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१९४] जैनसिद्धांतसंग्रह
अथ देवजयमाला प्राकृत। . पत्ताणुहाणे नणघणुदाणे पइपोसिउ तुहु खत्तपरु । तुहु चरणविहाणे केवलणाणे तुहु परमप्पउ परमपरु ॥ १॥ जय रिसह रिसीसर मियपाय । जय अजिय जियंगमरोसराय। नय संभव संभवकय विओय । नय अहिणंदण दियपोय ॥२॥ नय सुमह सुमइ सम्मयपयास । जय पउमप्पह पउमाणिवास | " . जय जयहि सुपास सुपासगत । जय चंदप्पह चंदाहवत्त ॥३॥
जय पुष्फयंत दंततरंग | जय सीयल सीयलययणमंग। 'नय सेय सेयकिरणोहसज्ज । जय वासुपुज पुज्नाणपुज्न १२॥
नय विमल विमलगुणसेविठाण । नय भयहि अणताणतणाण। जय धम्म धम्मतित्थयर संत । नय सांति सांति विहियायवत्त ॥५॥ चय कुंथु कुंयुपहुमंगिसदय । नय अर अर माहर विहियसमय। नय मलि मालि आदामगंध | जय मुणिमुन्वय मुन्वयणिबंध ॥६॥ नय गमि णमियामरणियरसामि । जय मि धम्मरहचकणेमि । जय पास पासछिंदणकिवाण । भय वडूढमाण जसवड्ढमाण ॥॥
घत्ता। इह गाणिय णामीह, दुरियविरामहि, परहिवि णमिय सुरावलिहि। अणहहिं अणाइहिं, समियकुवाइदि, पणविमि अरईतावलिहिं ।। ॐ ह्रीं वृषमादिमहावीरान्तेभ्यो महा निर्वणमीति स्वाहा ॥१॥
अथ शास्त्रजयमाला प्राकृत । संपइ सुहकारण, कम्मवियारण, भवसमुदतारणतरणं। . निणवाणि णमस्सामि, सतपयास्समि, सरगमोक्खसंगमकरणं ॥१॥.