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जैनसिद्धांतसंग्रह पाखंडी ठग यह अभिमानी || मारो. 'याहि पकड पापीको तपसी मेष चोर है छानी। ऐसे वचन बाणको बेला क्षमा ढाल मो मुनि ज्ञानी ॥ १४ ॥ . . . . . . i. १३ वध बंधन परीषह-निरपराध नि₹र महामुनि तिनको दुष्ट लोग मिल मौर। कोई बैंच खंबसे बांध कोई पावक, परनारै ॥ तहां कोप करते न कदाचित पूरव कर्मविपाक विचारें। समरथ होय सहें व बंधनते गुरु भव भव शरण हमारें। .: याचना परीषह-घोर वीर तपकरत तपोधन भये. क्षीण सूखी गलबांहीं । अस्थि चाम अवशेष रहो तन नसांजाल झूलक तिसमाहीं॥ औषधि असन पान इत्यादिक प्राण जाउ पर जांचत नाहीं। दुर्डर अयाचक व्रत धार करै न मलिन घरम. परछाहीं ॥ १६ ॥.
१५ अलाभ परीषह-एकवार भोजनकी वेला मौन साधं बस्तीम भाव । नो न बनै योग्य भिक्षाविधि तो महन्त मन खेद न लावै ।। ऐसे भ्रमत बहुत दिन बीते तब तपथद्धि
भावना भावें। यों अलाभकी परम परषिह सह साधु लो ही शिव • पावः ॥ १७॥
...१६.रोग परीषह-बात पित्त कफ श्रोणित चारों ये जब घटें बर्दै तनु माहीं । रोग संयोग शोक जव उपजत जगत ....नाव कायर होजाहीं ॥.ऐसी व्याधि वेदना दारुण सह सूर.उप..
चार न चाहीं ॥ आतमलीन विरक्त . देहसों जैनयती निज नेम निवाहीं॥१८॥ . .... ... ..
मातमलीन विरक्त. हा दारुण सह सूर.उप.
निवाहीं