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जैन कथामाला भाग ३१ मेघसेन ने अपनी पुत्री अश्वसेना और भाग्यसेन ने अपनी पुत्री पद्मावती देकर उनका सम्मान किया।
वहुत समय तक रहने के बाद वे वहाँ से चले तो भद्दिलपुर आ पहुंचे । भद्दिलपुर का राजा पुढे पुत्रहोन मर गया था। इस कारण उसकी पुत्री पुढ़ा पुरुपवेग मे वहाँ का गामन कर रही थी। कुमार को देख कर पुढा आकर्षित हो गई। अपनी ओर अनुरागवती जान कर वसुदेव ने उससे विवाह कर लिया।
पुढ़ा के गर्भ से एक पुत्र उत्पन्न हुआ। इसका नाम भी रखा गया पुढ़। यही पुत्र भद्दिलपुर का राजा बना ।
कुमार वसुदेव और रानी पुढ़ा का समय बड़े आनन्द और सुख से व्यतीत हो रहा था। किन्तु उस मे वाधक वनकर आया विद्याधर अगारक।
अगारक विद्याधर वसुदेव से गत्रुता रखता था क्योकि उन्ही के कारण तो उसका राज्य छिन जाने वाला था। उसने एक रात सोते हुए वसुदेव का हरण किया और गगा नदी में फेक दिया।
-~-त्रिषप्टि० ८/२ -वसुदेव हिंडी मित्रश्री धनश्री लभकः
कपिला लभक पद्मा लभक अश्वसेना लेभक पुड्रा लभक
१ अगारक की शत्रुता के कारण का विस्तृत वर्णन देखिए इमी पुस्तक के
'अध्याय ५ वसुदेव का वीणावादन' तथा विपष्टि ८/२ गुजराती
अनुवादक पृष्ठ २२३ पर । २ पद्मा के पिता का नाम वसुदेव हिंडी मे अमग्नसेन दिया है।