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________________ श्रीकृष्ण-कथा-~-वसुदेव के अन्य विवाह ४६ और विनमि' वहाँ नहीं थे। दीक्षित ध्यान मग्न भगवान के पास जब वे राज्य की याचना करने लगे तो उस समय प्रभु दर्शनो के निमित्त आये धरणेन्द्र ने उन्हे वैताढ्य गिरि की उत्तर और दक्षिण दोनो श्रेणियो का अलग-अलग राज्य तथा गौरी प्रज्ञप्ति अदि अडतालीस हजार विद्याएँ दी । नमि का पुत्र मातग हुआ। उसके वश में १ नमि और विनमि विद्याधर वश के आदि पुरुष थे । इनकी कथा सक्षेप मे इन प्रकार है - प्रथम तीर्थकर भगवान ऋपभदेव के दीक्षा ग्रहण करते समय प्रमु के साय चार हजार अन्य राजा भी दीक्षित हुए थे। उनमे कच्छ और महाकच्छ भी ये। जव ये सभी क्षुधा-तषा परीसह को न सह सके तो तापस होगए । इन्ही कच्छ महाकच्छ के पुत्र थे नमि और विनमि । प्रभु के दीक्षा अवमर पर ये दोनो भाई किसी कार्यवश अन्यत्र गये हुए थे । जब वापिस आए तो उन्होने अपने पिता को तापस वेण मे देखा। वे दोनो राज्य न पाने से किचित् दुखी हुए। पर सोच-विचार कर भगवान ऋपभदेव के पास जा पहुँचे और राज्य की याचना करने लगे। प्रभु तो समार से निलिप्त थे अत मौन हो गये। उनकी याचना का कोई उत्तर नही दिया । नमि-विनमि प्रभु के साथ ही लगे रहे । वे जहाँ-जहाँ गमन करते थे, दोनो भी उनके पीछे-पीछे चलते किन्तु अपनी राज्य-याचना की रट कभी न भूलते। एक बार धरणेन्द्र प्रभु के दर्शनो के लिए आया तो इन्हे राज्य मांगते देखा। उसने बहुत समझाया कि भगवान के पास राज्य कहाँ रखा है, वे तो संसार से निस्पृह है किन्तु ये दोनो नहीं माने । प्रभु के प्रति अविचल भक्ति देखकर धरणेन्द्र प्रसन्न हो गया और उसने दोनो भाइयो को वैताढय गिरि की दोनो श्रेणियो का राज्य दे दिया माथ ही ४८००० विद्याएँ भी। [ विस्तार के लिए देखिए त्रिपण्टि १/२ गजराती अनुवाद पृष्ठ ६४-६७ ]
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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