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जैन कथामाला भाग -३१ गन्धर्वसेना के साथ कुमार वसुदेव सुख से दिन तो विताने लगे किन्तु उनके हृदय मे उसके विगत जीवन को जानने की जिज्ञासा बनी रही।
-~-त्रिषष्टि० ८/२ - उत्तरपुराण ७०/२४६-२६६ ---वसुदेव हिडी, श्यामा-विजया तथा श्यामली
और गधर्वदत्ता लभक
० उत्तर पुराण की भिन्नताएँ इस प्रकार है(१) विजयपुर के स्थान पर विजयखेट नगर बताया है और राजा का
नाम सुग्रीव के बजाय मगधेश तथा पुत्री का नाम श्यामा के स्थान
पर श्यामला। (श्लोक २४६-५०) (२) वन का नाम देवदार है । (श्लोक २५२) (३) कु जरावर्त नगर के स्थान पर किन्नरगीत नगर । (श्लोक २५३) (४) श्यामा के स्थान पर शाल्मलिदत्ता। (श्लोक २५४) (५) सुप्रभा के स्थान पर पवनवेगा । (श्लोक २५५) (८) यहाँ निमित्त ज्ञानी कहा गया है । माथ ही नाम नही बताया गया ।
(श्लोक २५५) (६) यहाँ इतना उल्लेख है कि शाल्मलिदत्ता ने उन्हे पर्णलघी विद्या से
चपापुर नगर के समीप वाले सरोवर के बीच टीले पर धीरे से
उतार दिया। (श्लोक २५७-५८) (८) सगीताचार्य का नाम मनोहर है। (श्लोक २६२) । (९) गधर्वदत्ता के स्वयवर मे वसुदेव पहले विष्णुकुमार मुनि की कथा
मुनाकर कहते हैं कि देवो ने उस समय घोपा, सुघोषा, महासुघोषा
और घोपवती ये चार वीणाएं दी थी उनमे से घोपवती वीणा आपके परिवार मे है, उसे लाओ । (श्लोक २६५-६६) इसके बाद वे वीणावादन करके गधर्वदत्ता को जीतते हैं । (यहाँ गधर्वसेना का ही नाम
गधर्वदत्ता है ।) ० वरदेव हिंदी में भी उत्तर पुराण के अनुसार विष्णुकुमार मुनि की कथा
और देवप्रदत्त वीणा बजाने का उल्लेख है और गधर्वसेना का नाम भी गवर्वदत्ता है। (गधर्वदत्ता लम्मक)