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________________ प्रकाशन में अर्थ सहयोग जैन श्रीकृष्ण - कथा के प्रकाशन मे सस्था को अनेक उदारचेता सज्जनो का अर्थ सहयोग प्राप्त हुआ है । उनके सहयोग के आधार पर ही हम साहित्य को लागत मूल्य पर ही पाठको के हाथो मे पहुँचाते है । अनेक प्रकाशनो मे तो अर्थ हानि उठाकर भी कम मूल्य मे देने की स्थिति रही है । अत सहयोगियो के प्रति आभार प्रदर्शन के साथ ही उदारमना सज्जनो से सहयोग का अधिकाधिक हाथ बढाते रहने की विनती करते है । * १००२) एक गुप्त दानी सज्जन । ५०१) श्री भवरलालजी लूकड, पाली * ५०१) श्री जवरीलालजी लूँकड, पाली आपके दो अनुज भ्राता भी है । श्री गुमानमलजी और लाभचन्द जी । आप दोनो सहोदर भ्राता है । आपने अपने पूज्य पिताजी श्री धनराज जी की पुण्यस्मृति मे यह अर्थ - सहयोग दिया है । आप दोनो भ्राता धार्मिक प्रकृति के सज्जन पुरुष है । दोनो के पापड का व्यवसाय है । श्री भँवरलालजी इस समय इन्दौर मे रहते है । श्री जवरीलाल जी अपनी जन्म भूमि पाली मे ही अपना व्यवसाय करते है । इस अर्थ सहयोग के लिये सस्था भ्रातृ युगल का आभार मानती है । समय-समय पर सस्था को आपका अर्थ सहयोग मिलता रहेगा, ऐसी आशा है ।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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