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जैन क्यामाला भाग ३१ अरुचि उत्पन्न हो गई। वह घृणापूर्वक टकटकी लगा कर उसे देखने लगी। धारिणी की घृणा तीव्र से तीव्रतर होती गई। उसने अपनी निजी दासी को बुलाकर आदेश दिया
-तुरन्त कासी की एक पेटी ले आओ। 'जो आज्ञा' कहकर दासी चली गई।
जब तक दासी पेटी लेकर लौटी तव तक रानी ने पूरी तैयारी कर ली। उसने पेटी मे अपनी और राजा उग्रसेन की नामाकित मुद्रा रखी, साथ ही पूरा विवरण लिख कर एक पत्र तथा बहुत से रत्न भर दिये। उनके ऊपर अपने नव-जात शिशु को लिटा कर दासी को आज्ञा दी कि 'इसे यमुना नदी में प्रवाहित कर आओ।'
पेटी का ढक्कन बन्द करते हुए रानी की एक आँख हंस रही थी और एक रो रही थी। पति और पुत्र स्त्री की दो ऑखे ही तो है।।
दासी ने स्वामिनी की आज्ञा का पालन किया । पेटी (सन्दूक) यमुना मे वहा दी गई।
० उत्तर पुगण मे तापम के निराहार रहने के कारणो का भी उल्लेख हुआ है और उसका नाम बताया है -जठर कौशिक । सक्षिप्त घटनाक्रम इस प्रकार है____ गगा और गधवती के सगम पर तापसो का आश्रम था । उसका कुलपति था जठर कौशिक । एक बार वहाँ गुणभद्र और वीरभद्र नाम के दो मुनि आए। उनकी प्रेरणा में वह वाल तप से विरत हुआ । उसके बाद तपस्या के प्रभाव से उसके पास सात व्यतर देवियाँ आई किन्तु उसने यह कहकर लौटा दिया कि अभी कुछ काम नहीं है,अगले जन्म मे सहायता करना । (श्लोक ३२८-३३०).
इसके पश्चात वह विचरण करता हुआ मथुरा नगरी में आया । उमने मामखमण का अभिग्रह लिया था। राजा उग्रसेन ने उसे देखा तो भोजन का निमन्त्रण दे दिया। साथ ही प्रजा को आदेश दिया कि इन मुनि को कोई भी आहार न दे । (श्लोक ३३३)