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श्रीकृष्ण - कथा - वासुदेव - वलभद्र का अवसान
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बढ़ा और एक सूखे ठूंठ को पानी पिलाने लगा । वलराम ने व्यगपूर्वक कहा
-जने ठूंठ को पानी पिलाने से क्या लाभ
?
-हरा हो जायगा ।
- वज्रमूर्ख है तू । यह कभी हरा नही हो सकता ।
- क्यो नही हो सकता ? जव तुम्हारा मृत भाई जीवित हो सकता है तो यह ठूंठ हरा क्यो हो सकता
?
बलराम पुन सुनी-अनसुनी करके आगे वढ गए। देव ने भी एक ग्वाले का रूप बनाया और एक मरी गाय को घास खिलाने लगा । वलराम ने उससे कहा
-कही मरी गाय भी घास खाती है ? जीवित होती तो खाती । क्यो व्यर्थ परिश्रम कर रहे हो ?
- जब तुम अपने भाई के मृत कलेवर को छह माह से ढोने का परिश्रम कर रहे हो तो
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- क्या मेरा भाई मृत है ? बलराम ने सरोष कहा । - तो क्या मेरी गाय मृत है ? - देव का प्रतिप्रश्न था ।
- जब घास नही खाती, हलन चलन नही करती तो मृत ही है । -यह लक्षण तो तुम्हारे भाई के शरीर के भी है । वह भी तो नही खाता, हलन चलन भी नही करता, फिर वह कैसे जीवित है ? वलराम मौन होकर सोचने लगे । देव ने ही पुन कहा- विश्वास न हो तो स्वयं परीक्षा कर लो ।
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देव की बात सुनकर वलराम ने अपने कधे से कृष्ण का शव उतारा और देखने लगे । शव में से तीव्र दुर्गन्ध आ रही थी। जीवन का कोई लक्षण शेप नही था । वे विचारमग्न हो गए तभी देव ने सिद्धार्थ सारथी का रूप बनाकर बलराम को सवोधित किया
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१ (क) आचार्य जिनमेन के हरिवशपुराण के अनुसार
'जरत्कुमार (जराकुमार) द्वारा श्रीकृष्ण के निधन का समाचार पाकर पाडव माता कुती और द्रोपदी के साथ आते है और वलभद्र से कृष्ण