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जैन कथामाला : भाग ३३ ___-कदव वन की कादवरी गुफा में विशाल भडार है ।-सेवक ने वताया।
यादवकुमारो को बहुत दिन बाद मदिरा पीने को मिली थी। वे लालायित हो उठे। सीधे कदव वन मे जा पहुँचे और मद्यपान की गोष्ठी ही आयोजित कर डाली। सभी ने छककर मदिरा पी और उत्सव सा मनाते हुए नगर की ओर चल दिये।
सयोग से द्वीपायन ऋपि पर उनकी दृष्टि पडी। देखते ही क्रोध आ गया । नशे मे अधे तो थे ही । वोले___-अरे | इसी के कारण तो द्वारका का विनाश होगा। इसे मारपीट कर खतम कर डालो।
बस, सबके सब ऋपि को मारने लगे। कोई हाथ से और कोई लात से । कुछ देर तक तो ऋषि पिटते रहे किन्तु जब मारने वाले रुके ही नही और पीडा असह्य हो गई तो उन्होने सपूर्ण द्वारका को भस्म करने का निदान कर लिया।
ऋषि को अधमरा छोडकर यादवकुमार नगर मे आ गये। __कृष्ण को ज्यो ही इस घटना का पता लगा त्यो ही अग्रज वलभद्र के साथ द्वीपायन के कोप को शात करने हेतु जा पहुंचे। क्षमा मांगते हुए बोले
-हे ऋपि । यादवकुमारो की धृष्टता और उद्दण्डता के लिए मैं क्षमा माँगता हूँ। आप भी शात होकर उन्हे क्षमा कर दीजिए । ___-वासुदेव । तुम्हारे मधुर वचन मेरी कोपाग्नि को और भी भड़का रहे हैं। तुम्हे कुमारो को पहले ही रोकना चाहिए। क्या यही तुम्हारा राजधर्म है कि तपस्वियो को ताडना दी जाय ।-तपस्वी द्वीपायन ने सकोप कहा। ____-मैं कुमारो को दण्डित करने का वचन देता हूँ। आप
-दण्डित तो मैं करूँगा, सपूर्ण द्वारका को भस्म करके । न द्वारका रहेगी न यादवकुमार ।-द्वीपायन ने बात काटकर कहा। ..