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जैन कथामाला भाग ३३ -~-क्या आप वृद्धावस्था और मृत्यु से भी मेरी रक्षा कर सकेगे ? थावच्चापुत्र ने प्रश्न किया। ___ इस प्रश्न पर वासुदेव मौन हो गए और थावच्चापुत्र प्रबजित ।
(मातासूत्र, अ० ५) [५] श्रीकृष्ण और पिशाच एक समय श्रीकृष्ण, बलदेव, सात्यकि और दारुक-ये चारो वन बिहार को गए। भयकर वन मे ही सूर्यास्त हो गया। प्रगाढ अधकार के कारण नगर लौटना सभव न था अत एक विशाल वृक्ष के नीचे विश्राम करने का विचार किया। सभी थके-हारे थे किन्तु वन मे सुरक्षा भी होनी आवश्यक थी-कही कोई हिसक पगु न आ जाय । अत निश्चित हुआ कि एक-एक व्यक्ति एक-एक पहर तक जाग कर पहरा दे और वाकी तीन आराम से सो जायँ । - इस व्यवस्था के अनुसार दारुक ने निवेदन किया
-प्रथम प्रहर मेरा है, आप तीनो सुख से नीद ले । सभी ने उसकी बात स्वीकार की और सो गए। दारुक पहरा देने लगा। कुछ समय पश्चात ही वहाँ एक भयकर पिगाच आया और बोला
. -दारुक । मैं बहुत दिन से भूखा हूँ। मुझे भोजन नही मिला है । तुम अपने प्राण बचाओ और मुझे इन तीनो को खा लेने दो।
परन्तु दारुक पिशाच की इस इच्छा को कहाँ स्वीकार करने वाला था? उसने गर्जते हुए कहा___-अरे पिशाच | मेरे जीवित रहते खाना तो बहुत दूर, तू इनको छ भी नहीं सकता। __खा तो मैं जाऊँगा ही। तुम चाहो तो मेरी बात मान कर अपने प्राण वचा सकते हो। --पिशाच ने चाल चली।
-तू यहाँ से चला जा, क्यो व्यर्थ ही काल के गाल मे जाना चाहता है। -दारुक ने गर्वोक्ति की।