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जैन कथामाला . भाग ३३ पालक को रात भर नीद नही आई। उसे वासुदेव के दर्पक अश्व को पाने की इच्छा थी। प्रात काल ही उठकर प्रभु के पास जा पहुंचा और जल्दी-जल्दी वदन करके लौट आया।
शाम्ब की प्रवृत्ति दूसरे प्रकार की थी। उसे पुरस्कार का लोभ नही जागा । चैन से सोया। प्रात उठकर शैय्या से उतरा और वही से भक्तिभाव-विभोर होकर नमस्कार किया।
श्रीकृष्ण के पास पहुँचकर पालक ने दर्पक अश्व की मांग की। वासुदेव ने जाकर भगवान से पूछा
-प्रभो | आपको आज प्रात प्रथम वन्दन किसने किया-शाम्ब 'ने अथवा पालक ने ?
-भाव से गाम्ब ने और द्रव्य से पालक ने ।-प्रभु ने बताया। निर्णय हो गया । पुरस्कार गाव को मिला ।
[३] ढढण मुनि श्रीकृष्ण की ढढणा नाम की रानी से उत्पन्न ढढणकुमार पुत्र था। वह भगवान अरिष्टनेमि की धर्मदेशना सुनकर प्रवजित हुआ । अल्प समय मे ही उग्र तपोसाधना करने लगा।
एक वार श्रीकृष्ण ने पूछा
-प्रभो । आपके १८००० श्रमणो मे सबसे अधिक उग्रतपस्वी और कठोर साधक कौन है ? सर्वज्ञ सदैव स्पष्ट और यथार्थवक्ता होते हैं। भगवान ने कहा-ढढण मुनि । चकित होकर वासुदेव ने पुन पूछा—अल्प समय मे ही ऐसी कौनसी कठोर साधना की, उन्होंने ।
-~-अलाभः परीपह को जीत लिया। अन्तसय कर्म के प्रबल उदय के कारण उसे निर्दोष भिक्षा नही मिलती, अत वह नहीं लेता।
प्रभु का यह कथन सुनकर साधुओ ने जिज्ञासा की