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________________ ३.१० जैन कथामाला : भाग ३३ फिर इसी भरतक्षेत्र के मलय देश मे पलाशकूट गाँव के एक गृहस्थी यक्षदत्त की स्त्री यक्षदत्ता से यक्ष नाम का पुत्र हना। उनके दूसरा पुत्र यक्षिल हुआ। वडा भाई निर्दय था इसलिए लोग उस निरनुकप कहते थे और छोटा भाई दयावान था इसलिए उसका नाम सानुकप पड़ गया। एक दिन निरनुकप वर्तनो ने भरी वैलगाडी ला रहा था और मार्ग मे एक अन्धा मर्प बैठा था । सानुकप के बार-बार मना करने पर भी निरनुकप ने गाडी उम सर्प पर चला दी । सर्प मर कर ग्वंतबिका नगरी के राजा वासव की रानी वसुधरा से यह नदयशा नाम की पुत्री हुई है। उसके बाद सानुकप के बहुत समझाने पर निरनुकप की कपाये कुछ जात हुई और मरकर यह निनामक हआ। पूर्वजन्म के वैर के कारण ही नदयशा इस पर क्रोध करती है । - । । मुनि द्रमसेन का यह कथन सूनकर हो राजपूत्र, शख और निर्नामक मत्र विरक्त होकर दीक्षित हो गए। नदयशा और रेवती धाय ने भी सुव्रता आर्या के पास सयम से लिया। एक दिन नदयणा ने अपनी मूर्खता मै यह निदान किया कि दूसरे जन्म में भी मैं इन सातो पूत्रो की माता वन और रेवती ने यह निदान किया कि मैं इन छहो पुत्रो का पालन करूं । आयु के अत मे मभी महाशुक्र विमान में मामानिक देव हुए। __यह पूर्व जन्म का वृतान्त सूनाकर वरदत्त गणधर ने देवकी में कहा हे देवकी । नदयगा का जीव तो तुम हई और रेवती मलय देश के महिलपुर नगर के सेठ सुदृष्टि की स्त्री अलका नाम की सेठानी हुई । तुम्हारे छहो युगल पुत्रो का इसने पालन किया। शख का जीव वलभद्र हुआ है और निर्नामक ने स्वयभू नाम के वासुदेव (नारायण) की समृद्धि देख कर निदान किया था। उसके फलस्वरूप कृष्ण हुआ है। देवदत्त, देवपाल, अनीकदत्त, अनीकपाल, शत्र धन और जितशत्रु तुम्हारे ही पुत्र हैं। इसी कारण इन्हे देखकर तुम्हारे हृदय मे वात्सल्य भाव जाग्रत हुए थे। मोट-इस प्रकार उत्तर पुराण के अनुसार देवकी के मात ही पुत्र थे । गज सुकुमाल की उत्पत्ति का वहाँ कोई उल्लेख नही है।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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