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________________ करो-रक्षा करो' शव्द द्रौपदी के कानो पडे । वह द्रवित हो गई । बोली - अव तुम मुझे आगे करके, स्वय स्त्री का वेश धारण करो और श्रीकृष्ण के चरण पकड लो तो तुम्हारी रक्षा हो सकती है, अन्यथा नही । राजा पद्मनाभ ने द्रोपदी के कहे अनुसार ही श्रीकृष्ण के चरण पकड़ लिए और विनीत शब्दो मे कहने लगा - - हे महाभुज । मैं आपके ! अपार पराक्रम को देख चुका । मैं आपकी शरण हूँ । आप मुझे क्षमा करें। ऐसा दुष्कर्म अब कभी नही करूँगा । कृष्ण का कोप विनीत वचनो से शांत हो गया । वे वोले - यद्यपि तुम्हारा अपराध अक्षम्य है किन्तु फिर भी मैं तुम्हे क्षमा करता हूँ क्योकि शरणागत की रक्षा करना क्षत्रिय का धर्म है । अब तुम मेरी ओर से निर्भय हो जाओ । यह कहकर वासुदेव ने पुन समुद्घात द्वारा अपना सहज सौम्य रूप बना लिया और द्रौपदी को रथ पर बिठाकर पाडवो के पास आए। उन्होने स्वय अपने हाथ से द्रौपदी पांचो पाडवो को सौप दी । पाडव द्रौपदी को पाकर हर्षित हुए । रथारूढ होकर सभी लोग जिस मार्ग मे आये थे उसी मार्ग से वापिस चल दिए । X X X X घातकीखण्ड के भरतक्षेत्र की चम्पानगरी के पूर्णभद्र उद्यान मे कपिल वासुदेव भगवान मुनिसुव्रत प्रभु के ममवसरण मे बैठा उनका 'पावन प्रवचन सुन रहा था । श्रीकृष्ण द्वारा पूरित पाचजन्य शख की ध्वनि उसके कानो मे पडी । विस्मित होकर वह सोचने गा- 'क्या यह मेरा जैसा ही गखनाद नही है ? तो क्या इस क्षेत्र मे कोई दूसरा वासुदेव उत्पन्न हो गया ?' उसने प्रभु से पूछा -- - नाथ | यह किस महावली की शखध्वनि थी ? - यह वासुदेव कृष्ण की शखध्वनि है । * - तो क्या इस क्षेत्र मे दूसरा वासुदेव उत्पन्न हो गया ?
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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