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________________ द्रौपदी का अपहरण देवर्षि नारद के आने पर पाँचो पाडवो और कती आदि सभी ने उठकर उनका स्वागत किया किन्तु द्रौपदी ने उन्हे असयत जानकर उनकी पर्युपासना नही की।' ऊपर से भद्र और विनयी दिखाई देने वाले नारद द्रौपदी के इस व्यवहार पर जल उठे। किन्तु उस समय वे अपने मनोभावो को छिपाकर पाडुराजा से कुशल, क्षेम की वात-चीत करके चले गए। ____ नारदजी हस्तिनापुर के अन्त.पुर से चले तो आए किन्तु उनके हृदय मे द्रौपदी के अशिष्ट व्यवहार से उत्पन्न हुई शल्य खटकती रही। वे यही सोचते रहे कि द्रौपदी को किस उपाय से कष्ट पहुँचाया जाय ? क्या किया जाये कि उसका दर्प-दलित हो ? . सती स्त्री को दारुण-दुख एक ही होता है-पति-विछोह । नारदजी इसी उपाय पर विचार करने लगे। उन्होने सोचा--'दक्षिण भरतार्द्ध १ (क) जाताधर्म मे नारद का नाम कच्छुल्ल बताया है तए ण ना दोवईदेवी कच्छुल्ल नारय अविरय अप्पडिहयपच्चक्खायपावकम्म ति कटु नो आढाइ नो परियाणाड नो अमुळेइ, नो पज्जुवामाइ । (ज्ञाताधर्मकथा, अध्ययन १६, सूत्र १६०) (ख) हरिवण पुराण मे द्रौपदी की इम अभिप्टना का दूसरा कारण वताया गया है___ द्रौपदी आभूषण धारण करने में व्यस्त थी, अतः उसने नारद को देखा नहीं। -हरिवश पुराण ५४१५ २८३
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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