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बाणासुर का अन्त
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शुभनिवासपुर के खेचरपति वाण की पुत्री उपा ने अपने योग्य वर की प्राप्ति हेतु गौरी नाम की विद्या का आराधन किया । प्रगट होकर विद्या ने बताया
- पुत्री | तेरा वर अनिरुद्ध है । - अनिरुद्ध कौन ?
- वासुदेव श्रीकृष्ण का पौत्र और वैदर्भी से उत्पन्न प्रद्युम्न का
पुत्र । वह इन्द्र के समान ही रूपवान और बलवान है ।
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विद्या अदृग्य हो गई और उषा अनिरुद्ध के विचारो मे खो गई । खेचरपति वाण ने भी गौरी विद्या के प्रिय शकर नाम के देव की आराधना की । पुत्री को पति की कामना थी तो पिता को अजेय होने की । कर प्रसन्न हुआ और उसने प्रकट होकर पूछा
- क्या चाहते हो, विद्याधर ?
- मैं ससार मे अजेय हो जाऊँ । रणभूमि मे कोई मुझे जीत न सके ।
देव ने तथास्तु कह दिया । किन्तु ज्यो ही गौरी विद्या को मालूम हुआ उसने तुरन्त सावधान किया - देव । तुम्हारा यह वरदान मिथ्या है।
- क्यो ? -- अचकचाकर शकर ने पूछा ।
- इसलिए कि वाण खेचरपति अजेय नही है । इसकी मृत्यु वासुदेव श्रीकृष्ण के हाथो युद्ध भूमि मे ही होगी ।
- अब क्या करूँ ?
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