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________________ जिसकी ओर पुरुष का चित्त आकर्षित हो ही जाता है। सागरचन्द्र भी अनुरक्त हो गया। नारदजी उठकर चल दिए, अव उनका वहाँ क्या काम ? सीधे . जा पहुँचे कमलामेला के पास । उसने भी यही प्रश्न किया - कोई आश्चर्यकारी वस्तु बताइये। - गम्भीर होकर नारदजी बोले--पुत्री ! एक हो तो वताऊँ । मैंने तो दो वस्तुएं देखी है। -दोनो ही बताइये मुनिवर । -कुरूपता मे आश्चर्य है नभ सेन और सौन्दर्य मे सागरचन्द्र । कमलामेला विचार मे पड गई और नारदजी उठकर चल दिए। उसे अपने भाग्य से - शिकायत हुई और नभ सेन से नफरत । कौन कुमारी कुरूप को अपना पति वनाना चाहेगी? वह सागरचन्द्र की ओर अनुरक्त हो गई और उसका नाम जपने लगी। ____ यही दशा सागरचन्द्र की थी। वह भी सोते-जागते कमलामेला का नाम रटने लगा। - - - - एक दिन शाव.ने आकर हास्य मे पीछे से उसकी आँख मीच ली। महसा सागरचन्द्र के मुख से निकला -कौन ? कमलामेला आ गई क्या ? -कमलामेला नही कमलामेलापक -हँसकर शाव ने कहा और उसकी आँखो पर से अपने हाथ हटा लिए। आप ठीक कहते है। कमलामेला से मिलाप आप ही करा सकते है। -- मैं नहीं करा सकता।-शाव ने स्पष्ट इन्कार कर दिया। अपना प्रयोजन सिद्ध करने हेतु उसने गाव को मदिरा पिलाई। मदिरा-प्रेमी तो वह था ही, अधिक पी गया और पीकर वहकने लगा। तव सागरचन्द्र ने उससे कमलामेला के मिलाप का वचन ले लिया। नशा उतरने के बाद शांव को वचन की याद आई तो पछताने लगा किन्तु अव हो भी क्या सकता था। वचन तो पूरा करना ही पडेगा । सागरचन्द्र भी उससे वार-बार आग्रह करने लगा।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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