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अर्द्धरात्रि को जरासध यज्ञशाला मे आया । उस समय उसने कहा - 'आप लोग मुझे ब्राह्मण नही लगते । क्षात्र तेज स्पष्ट झलक रहा 'है ।' तब कृष्ण ने अपना और दोनो पाडु पुत्रो का परिचय दिया और कहा हममे से जिसे चाहो द्वन्द्व युद्ध के लिए चुन लो । उसका अपराध कृष्ण ने यह बताया कि तुम क्षत्रियो की वलि देकर महादेव को प्रसन्न करना चाहते हो | इसीलिए हम तुम्हे मारना चाहते हैं ।
जरासंध ने भीम से युद्ध करना स्वीकार कर लिया । कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा से चतुर्दशी तक दोनो का युद्ध चलता रहा। दोनो वीरो ने विभिन्न प्रकार का द्वन्द्व युद्ध किया । चौदहवे दिन जव जरासघ थक गया तो श्रीकृष्ण ने भीम को प्रेरित किया - ' कुन्तीपुत्र | थके हुए शत्रु को सरलता से मारा जा सकता है ।'
भीम इस प्रेरणा से और भी उत्साहित हो गया । उसने बड़े वेग से उस पर हमला किया और उसे ऊपर उठाकर तीव्र गति से घुमाने लगा । सौ बार घुमाकर पृथ्वी पर दे मारा और घुटना मार कर उसकी पीठ की हड्डी तोड दी । फिर पृथ्वी पर खूब रगडा और टाँगे चीरकर दो टुकडे कर दिए । जराम व यमलोक को चला गया ।
उन्होने जरासध
ममी वन्दी राजाओ को बन्दीगृह मे मुक्त करके के पुत्र सहदेव को मगध का शासक बना दिया । - महाभारत, सभापर्व, अध्याय १६-२४ अनुसार महाभारत युद्ध अलग से हुआ तथा कौरव मारे गए ।
२ देवप्रभसूरि के पाडव पुराण के था । इसमे पाडव विजयी हुए
वैदिक ग्रन्थ महाभारत के अनुसार महाभारत युद्ध के नायक कौरव-पाडव थे और पितामह भीष्म, गुरु द्रोणाचार्य, गुरुपुत्र अश्वत्थामा कृपाचार्य आदि सभी धनुर्धर तथा योद्धा कौरवो के पक्ष मे लडे और वीरगति को प्राप्त हुए । योद्धाओ के नाम पर केवल पाँच पाडव ही रह गए । धृतराष्ट्र तो वेचारे अन्धे थे हो । यहाँ कृष्ण युद्ध के नायक नही हैं । उन्होने कोई भाग भी नही लिया । केवल अर्जुन के सारथी बने । हाथ मे शस्त्र भी नही उठाया । हाँ, नीति अवश्य ही उनकी चली और उसी नीति के कारण पाडवो को विजय मिली ।