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जैन कथामाला भाग ३२
- तुम कौन हो ?
- आप मुझे न पहिचान नकी । मैं वही हूँ आप की दासी - कुब्जा । —कुव्जा ? तू कुरूप थी ? ऐसी मुन्दर कैसे बन गई ? चमत्कार हुआ
क्या
?
- एक ब्राह्मण की कृपा है ।
- कहाँ है वह ब्राह्मण ?
-वाहर खड़ा है ? उसे द्वार पर खडा कर आपके पास आई हूँ । - उस महात्मा को जल्दी अन्दर ला ।
सत्यभामा की आज्ञा पाकर दासी ब्राह्मण को अन्दर ले पहुँची । ब्राह्मण उसे आशिप देकर बैठ गया । सत्यभामा ने विनय की -- - ब्राह्मण देवता । मुझे भी सुन्दर बना दो । - तुम तो वैसे ही बहुत सुन्दर हो ।
- नहीं, और भी अधिक । विश्व की अनुपम सुन्दरी बनना है
-
मुझे । तुम मुझ पर कृपा करो । सत्यभामा ने आग्रह किया ।
- इसके लिए तुम्हे कुछ कष्ट उठाना पडेगा ।
- मैं सहर्ष प्रस्तुत हूँ ।
- तो सुनो-ब्राह्मण कपटपूर्वक कहने लगा —– सुन्दर बनने के लिए पहले कुरूप होना आवश्यक है, जितनी अधिक कुरूपता उतनी ही ज्यादा सुन्दरता ।
- आप जल्दी वताइये । मैं सुरूप बनने के लिए सब कुछ करूंगी।
- सिर के केश काटकर ( सिर मुंडवाकर ), सम्पूर्ण शरीर पर कालिख पोत कर, जीण-शीर्ण वस्त्र पहन कर आओ तत्र तुमको अनुपम सुन्दरता प्राप्त होगी ।
सत्यभामा ब्राह्मण का कपट न समझ सकी 1 उसके कथनानुसार रूप बनाकर आ बैठी । प्रद्युम्न को हँसी तो आई किन्तु बलपूर्वक रोककर उसने कहा
- मेरे पेट मे चूहे कूद रहे है । भूख से व्याकुल हूँ । तुम्हे मालूम