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________________ २३० जैन कथामाला भाग ३२ - तुम कौन हो ? - आप मुझे न पहिचान नकी । मैं वही हूँ आप की दासी - कुब्जा । —कुव्जा ? तू कुरूप थी ? ऐसी मुन्दर कैसे बन गई ? चमत्कार हुआ क्या ? - एक ब्राह्मण की कृपा है । - कहाँ है वह ब्राह्मण ? -वाहर खड़ा है ? उसे द्वार पर खडा कर आपके पास आई हूँ । - उस महात्मा को जल्दी अन्दर ला । सत्यभामा की आज्ञा पाकर दासी ब्राह्मण को अन्दर ले पहुँची । ब्राह्मण उसे आशिप देकर बैठ गया । सत्यभामा ने विनय की -- - ब्राह्मण देवता । मुझे भी सुन्दर बना दो । - तुम तो वैसे ही बहुत सुन्दर हो । - नहीं, और भी अधिक । विश्व की अनुपम सुन्दरी बनना है - मुझे । तुम मुझ पर कृपा करो । सत्यभामा ने आग्रह किया । - इसके लिए तुम्हे कुछ कष्ट उठाना पडेगा । - मैं सहर्ष प्रस्तुत हूँ । - तो सुनो-ब्राह्मण कपटपूर्वक कहने लगा —– सुन्दर बनने के लिए पहले कुरूप होना आवश्यक है, जितनी अधिक कुरूपता उतनी ही ज्यादा सुन्दरता । - आप जल्दी वताइये । मैं सुरूप बनने के लिए सब कुछ करूंगी। - सिर के केश काटकर ( सिर मुंडवाकर ), सम्पूर्ण शरीर पर कालिख पोत कर, जीण-शीर्ण वस्त्र पहन कर आओ तत्र तुमको अनुपम सुन्दरता प्राप्त होगी । सत्यभामा ब्राह्मण का कपट न समझ सकी 1 उसके कथनानुसार रूप बनाकर आ बैठी । प्रद्युम्न को हँसी तो आई किन्तु बलपूर्वक रोककर उसने कहा - मेरे पेट मे चूहे कूद रहे है । भूख से व्याकुल हूँ । तुम्हे मालूम
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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