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________________ हस्तिनापुर के राजा विश्वकमेन के मधु और कैटभ नाम के दो पुत्र हुए । नन्दीश्वर देव, चिरकाल तक भव-भ्रमण करता हुआ वटपुर नगर का राजा कनकप्रभ हुआ और राजकुमारी सुदर्गना उसकी पटरानी चन्द्राभा। राजा विश्वकसेन मधु को राज्यपद और कैटभ को युवराज पद देकर दीक्षित हो गया और सयम पालन करके ब्रह्मदेवलोक मे देव वना। मधु ने बहुत सी पृथ्वी विजय कर ली। एक बार भीम पल्लीपति उसके राज्य की सीमा पर उपद्रव करने लगा। उसका दमन करने के लिए मधु चला। मार्ग मे वटपुर के राजा कनकप्रभ ने उसका सत्कार किया। रानी चन्द्राभा ने भी उसे प्रणाम करके वहुत सी भेट दी। ज्यो ही चन्द्राभा अत पुर जाने को वापिस मुडी मधु काम-पीडित होकर उसे बलात् पकडने की इच्छा करने लगा। मन्त्रियो ने समझा-. बुझा कर उस समय उसे शात कर दिया। मधु भी उस समय चुप हो गया । पल्लीपति का दमन करने के पश्चात् वह लौटा तो पुन वटपुर नरेश कनकप्रभ ने स्वागत-सत्कार करके अनेक प्रकार की भेटे दी। मधु ने कहा-'राजन् । मुझे तुम्हारी अन्य भेट अच्छी नहीं लगती। तुम मुझे अपनी रानी चन्द्राभा अर्पण करो।' कौन पति ऐसा होगा जो अपनी पत्नी ही दूसरे को अर्पण कर दे ? कनकप्रभ ने भी चन्द्राभा अर्पण नहीं की। तव बलवान मधु ने . चन्द्राभा को जवरदस्ती पकडा और अपने साथ ले गया। निर्बल कनकप्रभ कुछ न कर सका और पत्नी वियोग मे दुखी होकर इधरउधर भटकने लगा। तडपने वाला तडपता रहा और मधु चन्द्राभा के साथ काम-क्रीडा का सुख भोगने लगा। एक वार मधु रानी चन्द्राभा के महल मे देर से पहुंचा तो उसने इस विलम्ब का कारण पूछा -आज आपको देर क्यो हो गई ?
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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