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श्रीकृष्ण-क्या-प्रद्युम्न के पूर्वभव
२०१ शालिग्राम मे सोमदेव नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी अग्निला के गर्भ से अग्निभूति और वायुभूति दो पुत्र हुए।
दोनो भाई युवावस्था प्राप्त करते-करते वेद-वेदाग के पारगामी विद्वान हो गए। विद्या यदि एक ओर विनयी वनाती है तो दूसरी ओर घमण्डी भी । अग्निभूति और वायुभूति दोनो घमण्डी हो गए । उन्हे अपने ज्ञान का बहुत मद था। अपने समक्ष वे किसी को कुछ नही समझते थे।
एक वार ग्राम के बाहर मनोरम उद्यान मे आचार्य-नदिवर्धन अपने शिष्य सघ सहित पधारे । सूरिजी का आगमन सुनकर गाँव के नर-नारी उनकी वदना को चल दिए।
विद्याभिमानी दोनो ब्राह्मण भाइयो के गर्व को ठेस लगी । उनके होते हुए किसी अन्य की ग्राम-बासी वदना करे यह उन्हे कहाँ सह्य था? ईर्ष्याग्नि मे जलते हुए वे भी मनोरम उद्यान पहुंचे और अपने ज्ञान की महिमा स्थापित करते हुए पूछने लगे
-अरे । श्वेताम्बरियो तुम मे कुछ ज्ञान हो तो वोलो ।
सूरिजी ने दोनो भाइयो के ज्ञानमद को पहिचान लिया । व्यर्थ का वितण्डावाद श्रमण नही करते, इसलिए वे चुप रह गये ।
दोनो भाइयो ने समझा कि श्रीसघ मे कोई ज्ञानी नहीं है। अत वार-बार अपना प्रश्न दुहराने लगे । उन्होने साधुओ का उपहास करना भी प्रारम्भ कर दिया। यह उपहास आचार्यश्री के शिष्य सत्य नाम के माधु को सह्य न हुआ। उसने गाति पूर्वक पूछा
-ब्राह्मण पुत्रो | तुम तो बहुत ज्ञानी मालूम पडते हो? -~~-मालूम क्या पडते है ? हम है ही ज्ञानी। -कुछ पूछौंगा तो उसका उत्तर दे दोगे ?
-क्यो नही ? तीनो लोको ओर नीनो कालो को ऐसी कौन-सी वात है जो हम से छिपी है ? तुम पूछो, हम अवश्य बता देगे।
ग्राम निवासी इस वार्तालाप को वडी रुचि से मुन रहे थे । उन्हे भी जिज्ञासा जाग्रत हो गई कि मुनिजी क्या पूछेगे ?