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________________ १६५ श्रीकृष्ण-कथा-~-प्रअ म्नकुमार का जन्म और अपहरण सत्यभामा शर्त स्वीकार करके अपने महल मे चली गई और कृष्ण, बलराम, दुर्योधन अपने-अपने स्थानो को। xxx एक रात्रि को रुक्मिणो ने स्वप्न मे देखा कि 'वह एक श्वेत वृषभ पर रखे एक विमान मे बैठी है।' उसी समय एक महद्धिक देव महाशुक्र देवलोक से च्यवकर उसके गर्भ ने अवतरित हुआ। रुक्मिणी की निद्रा टूट गई। उसने गवाक्ष से आकाश की ओर देखा-रात्रि का अन्तिम प्रहर व्यतीत होने वाला था। प्रात काल उठकर रुक्मिणी ने अपना स्वप्न श्रीकृष्ण को सुनाया। कृष्ण ने इसका फल बताते हुए कहा ---तुम्हारे गर्भ से अद्वितीय वीर पुत्र का जन्म होगा। स्वप्न का फल जानकर रुक्मिणी हर्ष से भर गई। दीवारो के भी कान होते है। सत्यभाभा की एक दासी ने यह स्वप्न और उसका फल सुन लिया। दासी ने अपना कर्तव्य निभाया और स्वामिनी के कानो मे यह समाचार ज्यो का त्यो डाल दिया। ___ दासी ने समाचार क्या सुनाया मानो पिघला हुआ सीसा ही उडेल दिया। सुनते ही सत्यभामा का मुख-विवर्ण हो गया। किन्तु निराशा से काम नहीं चलता। सौत के सम्मुख नीचा और सौत देख ले, असम्भव! चाहे जितने भी छल-छन्द करने पड़े पर अपनी नाक ऊँची ही रहनी चाहिए। ___ सत्यभामा ने भी 'मैने स्वप्न मे ऐरावण जैसा विशाल हाथी देखा है' कृष्ण को अपना कल्पित स्वप्न सुनाया। ___कृष्ण ने देखा सत्यभामा की आँखे सौतिया डाह से जल रही है। वे समझ गए कि यह स्वप्न की वात मिथ्या है। किन्तु अपने भावो को मन मे रख कर वोले —तुम्हारा स्वप्न तो एक उत्तम पुत्र का फल सूचित करता है। सत्यभामा हृदय में सतुष्ट होकर अपने महल मे लौट आई।
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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