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श्रीकृष्ण कथा- - अन्य पटरानियाँ
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श्रीकृष्ण अग्रज बलराम के साथ गए । हिरण्यनाभ रोहिणी' का सहोदर था । उसने अपने भानजे को पहचान कर उन दोनो का हर्षित होकर स्वागत किया ।
हिरण्यनाभ का ज्येष्ठ वन्धु रैवत भगवान नमिनाथ के तीर्थ मे श्रामणी दीक्षा ग्रहण करके गृहत्याग कर गया था उसने अपनी रेवती, रामा, सीता और वन्धुमती - चारो पुत्रियाँ बलराम के लिए सकल्प कर दी थी । अत राजा हिरण्यनाभ ने चारो कन्याओ का विवाह बलराम के साथ कर दिया ।
वसुदेव पुत्र
बलराम के विवाह के पश्चात् श्रीकृष्ण स्वयवर मे पहुँचे । उन्होने भरी स्वयवर सभा मे सभी राजाओ की नजरो के सामने पद्मावती का हरण कर लिया ।
स्वयवर मण्डप मे से राजकन्या का हरण हो जाय ओर उसके अभ्यर्थी क्षत्रिय देखते रहे, उनके क्षत्रियत्व का अपमान है यह । सम्मान की रक्षा और अपमान से पीडित अनेक राजा युद्ध के लिए तत्पर हो गए ।
युद्ध हुआ और श्रीकृष्ण ने सबको पराजित कर अपने पराक्रम का डिका वजा दिया |
पद्मावती उनकी हुई ! वे उसे द्वारका ले आए और गौरी के महल के समीप के महल मे उसके निवास का प्रबन्ध कर दिया ।
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गावार देश की नगरी पुष्कलावती के राजा नग्नजित का एक पुत्र था चारुदत्त और पुत्री गाधारी । गाधारी अपने रूप लावण्य से विद्याधरियो को भी पराजित करती थी ।
१ रोहिणी अरिष्टपुर के राजा रुधिर की पुत्री और वसुदेव की पत्नी थी । रोहिणी के गर्भ से ही बलराम का जन्म हुआ था । इसी कारण वसुदेव पुत्र बलराम और कृष्ण को हिरण्यगर्भ ने अपना भानजा मानकर विशेष स्वागत किया ।