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श्रीकृष्ण कथा-वसुदेव-कनकवती विवाह
६६ चित्र को देखती और कभी सामने खड़े वसुदेव को। एकाएक वह प्रसन्न होकर उठ खडी हुई और अजलि वॉध कर बोली
--मेरे पुण्य योग से तुम यहाँ आ गये । मै तुम्हारी दासी हूँ।
यह कहकर कनकवती उन्हें नमन करने को तत्पर हुई । वीच मे ही उसे रोक कर वसुदेव वोले
-स्वामिनी दास को नमन करे, यह अनुचित है।
-कौन दास ? कौन स्वामिनी ? मुझे स्वामिनी कहकर लज्जित न करिये । मैं तो आपकी दासी हूँ। ___-पह ने मेरा परिचय तो जान लीजिए ।
-~-जानती हूँ आप यदुवशो वसुदेव कुमार है। इससे ज्यादा और क्या जानना शेष रह जाता है ? ___-परिचय तो मेरा यही है किन्तु इस समय मैं तुम्हारे पास कुवेर का दूत वनकर आया हूँ।
---कुवेर का दूत ?..-आश्चर्यचकित होकर कनकवती ने पूछाक्या सदेश है उनका ?
वसुदेव कहने लगे
-देवराज इन्द्र का उत्तर दिशा का स्वामी (लोकपाल) धनद कुवेर तुम्हारा परिणय करना चाहता है। मैं उमका दूत हूँ। मेरी प्रार्थना है कि तुम उसकी पटरानी बनना स्वीकार करो।
राजकुमारी चिन्ता मे पड गई। एक ओर कुबेर की याचना और दूसरी ओर उसके हृदय मे वसे वसुदेव कुमार। किन्तु उसने तुरन्त निर्णय लिया और बोली
—मैं कुबेर को प्रणाम करती हूँ किन्तु मानवी का सवध देवो से नही हो सकता। वे महद्धिक सामानिक देव है और मै साधारण
-तुमने कुवेर की इच्छा उल्लघन किया तो मुसीबत में पड जाओगी। ___-नही कुवेर परम आर्हत है। किसी पूर्वजन्म के सम्बन्ध के कारण वे मुझ पर अनुरक्त हुए है किन्तु अर्हन्त प्रभु के इस वचन के
स्त्री।