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________________ stylamin श्रीकृष्ण,कया–कुवेर से भेट -भद्र । मेरे दूत बनना स्वीकार करो। -कहाँ जाना होगा? -~राजा हरिश्चन्द्र की पुत्री कनकवती के महल मे । वसुदेव सोचने लगे। तभी कुवेर ने कहा -किम दुविधा मे पडे हो ? -~-मैं सोच रहा हूँ कि उसके महल तक कैसे पहुँच सकूँगा। द्वारपाल ही रोक देगे। -मै तुम्हे अदृश्य होने की विद्या तथा अस्खलित वेग की शक्ति देता हूँ। -तव ठीक है । क्या कहना होगा ? -तुम कहना कि देवराज इन्द्र का उत्तर दिशा का लोकपाल धनद कुवेर तेरे प्रणय की इच्छा करता है । तू मानुषी तो है ही, उससे विवाह करके देवी बन । ___ कुवेर के इन शब्दो से वसुदेव के हृदय को धक्का सा लगा। किन्तु उन्होने अपने मन के भाव मुख पर नही आने दिए। प्रगट मे वोले'जैसी आपकी आज्ञा।' कुमार वसुदेव अपने भवन मे गये और राजसी वस्त्र उतार कर साधारण वस्त्र धारण करके लौटे । कुबेर ने पूछा -भद्र । यह क्या ? तुम इस साधारण वेश में ? -दूत के लिए यही वेश उचित है। - सभी जगह आडवर का सत्कार होता है। --किन्तु दूत के लिए उसके वचन ही आभूषण हैं। वसुदेव के इस उत्तर से कुवेर प्रसन्न हो गया। उसने आशीर्वचन कहे-तुम्हारा कल्याण हो। ___कुवेर का अभिवादन करके वसुदेव कनकवती के महल की ओर चल दिये। -त्रिषष्टि ८/३
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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