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श्रीकृष्ण - कथा --- माता का न्याय
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यह कह कर रक्षक उन्हे वधस्थल पर ले गये । वहाँ नुष्टिक आदि मल्ल उन्हें मारने के लिए तैयार खड़े थे ।
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राजगृही नगरी में वमुदेव की मृत्यु सामने खडी थी और गधसमृद्ध नगर मे उनके विवाह की वातचीत चल रही थी । राजा गधारपिगल को एक विद्या बता रही थी कि 'उसकी पुत्री प्रभावती का विवाह वसुदेव मे होगा ।' पुन राजा ने पूछा - 'इस समय वसुदेव कहाँ है' तो विद्या ने उत्तर दिया- 'राजगृही नगरी के बधस्थल पर खडा है ।'
राजा गधारपिंगल ने तुरत भगीरथी नाम की धात्री भेजी । आनन-फानन मे धात्री वमुदेव के पास पहुँची । उसने अपने विद्यावल से मुष्टिक आदि को भ्रमित किया और वसुदेव को ले उडी । जिन्दगी और मौत मे कितना कम फासला होता है ।
वसुदेव प्रभावती के साथ विवाह करके सुख मे रहने लगे । उन्होंने अन्य विद्याधर कन्याओ से भी विवाह किया और सुकोगला का परिणय करके उसके महल में निर्विघ्न रूप से सुख भोग मे लीन हो गये ।
- त्रिषष्टि० ८१२
- वसुदेद हिडी, प्रभावती लभक
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