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जैन कथामाला भाग ३१
- नहो इसके पिता ने ही मुझे दिया था । मैंने कोई छल नही किया । छल तो इस मानसवेग ने किया है जो सोती हुई मेरी परिणीता पत्नी सोमश्री को निर्लज्जतापूर्वक उठा लाया ।
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- और अपनी बहन वेगवती भी मैंने ही तुम्हें दी थी, न | उसके साथ क्यो सम्बन्ध कर लिया ।
- वेगवती मेरी विवाहिता पत्नी है । सभी जानते है । और सोमश्री का हरण जग जाहिर है । अन्तिम बात यह है कि सोमश्री से ही पूछ लिया जाय कि कौन उसका पति है और वह किसके साथ रहना चाहती है ।
वसुदेव के इस तर्क का उत्तर किसी के पास नही था । सभी जानते थे कि मानसवेग ने सोमश्री का हरण किया है और उसे वलपूर्वक रोके हुए हैं।
जव मनुष्य वातो मे पराजित हो जाता है तो खीझ कर हाथ चलाने लगता है । यही विद्यावर समूह ने किया । मानसवेग युद्ध को तत्पर हुआ तो उसके साथ नीलकठ, ' अगारकर, सूर्पक' आदि विद्याघर भी आ गये ।
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एक ओर अनेक विद्याधर और दूसरी और विद्याहीन अकेले वसुदेव । इस अन्याय को वेगवती की माता अगार्वती न देख सकी । उसने वसुदेव को दिव्य धनुप और वाणो से भरे दो तरकस दिये । प्रभावती ने प्रज्ञप्ति महाविद्या दी ।
दिव्य अस्त्रो से सुसज्जित पराक्रमी वसुदेव ने विद्याधरो को लीला मात्र मे ही पराजित कर दिया । मानसवेग को बदी बना कर सोमश्री के आगे ला, पटका ।
१ नीलकठ की शत्रुता वसुदेव से नीलयशा के कारण थी ।
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अगारक की शत्रुता का कारण अशनिवेग विद्याधर की पुत्री श्यामा से विवाह था ।
R सूर्पक विद्याधर की शत्रुता का कारण मदनवेगा से वसुदेव का विवाह था ।