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श्रीकृष्ण - कथा - देवी का वचन
ब्राह्मण ने बताया
इसका भी एक रहस्य ही है । कामदेव सेठ की परपरा मे इस समय कामदत्त सेठ है | उसकी पुत्री है वन्धुमती । बन्धुमती के विवाह के सम्बन्ध मे एक ज्ञानी ने बताया है 'जो इस देवालय के मुख्यद्वार को उघाड ( खोल) देगा, वही इसका स्वामी होगा' । देखे कौन पुण्यशाली इसे उघडता है । वसुदेव ने सपूर्ण वृतान्त सुन कर देवालय का मुख्यद्वार उधाड दिया । कामदत्त सेठ ने अपनी पुत्री बन्धुमती का विवाह उनके साथ कर दिया । विवाह उत्सव देखने राजा के साथ राजपुत्री प्रियगुसुदरी भी आई। वसुदेव को देखते ही उसके अग मे कामदेव समा गया ।
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द्वारपाल ने आकर वसुदेव को राजा एणीपुत्र का निर्मल चरित्र और राजपुत्री की दशा बताकर आग्रह किया - ' कल प्रात काल आप राजमहल में अवश्य आइये ।'
वसुदेव द्वारपाल की बात सुनकर चुप हो गये और द्वारपाल उनके मौन को स्वीकृति समझ कर चला गया ।
उसी दिन वसुदेव ने एक नाटक देखा । उसमे कथानक था - 'नमि के वा मे पुरुहूत राजा हुआ । एक दिन वह हाथी पर सवार होकर जा रहा था कि उसकी दृष्टि गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या पर पडी । पुरुहूत काम पीडित हो गया और उसने अहल्या को आश्रम मे ले जाकर उसके साथ रतिक्रीडा की । उसी समय गौतम ऋषि आ गये । उन्होने क्रोधित होकर उसका लिंग छेद कर दिया ।
इस कथानक ने वसुदेव के हृदय मे भय की एक लकीर खीच दी । वे प्रियसुन्दरी के पास नही गये । अपनी पत्नी बन्धुमती के साथ ही सो गये ।
आधी रात के समय अचानक उनकी नीद खुल गई । शयन कक्ष मे उन्हे एक देवी दिखाई दी । वे सोचने लगे-- 'यह कौन है ?" उन्हे विचारमग्न देखकर देवी ने कहा- वत्स । तुम क्या सोच रहे हो ?
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