________________
. जैन महाभारत
के वृद्ध यहां बैठे
ता कहां है आपका लकवा मार
हो.? क्या यही है कुरुवश की नीति ? क्या आप भी पापी के सहयोगी नहीं है ? जो पहले ही अपने आप को पराधीन कर चुका हो, जिस की स्वतन्त्रता छिन गई, उसे एक नारी की वाजी लगाने का क्या अधिकार थां? मुझे युधिष्ठिर को दाव पर लगाने का अधिकार किस ने दिया है यह कहां का न्याय है कि कोई व्यक्ति पराधीन हो गया तो उसकी पत्नी भी पराधीन कर दी जाय ? जिस अधर्म में मेरी कभी सम्मति नही हुई उस में मुझे हारने या जीतने का किसी को अधिकार नही है। मेरा अपना अस्तित्व है। मैं धातु नही हूं, मैं मानव हूं। मुझे अपने जीवन के सम्बन्ध में निर्णय करने का स्वय अधिकार है। आपजो कुरुकुल के वृद्ध यहां बैठे है, आप की जबान को क्या लकवा मार गया है । कहां है आपकी वीरता कहां है आप का न्याय ? बोलो क्या नारी का अपमान करना ही आप के कुल की परम्परा है। आप के भी बह बेटियां हैं, आप भी किसी नारी की कोख से जन्म ले कर ही इतने बडे हुए, क्या नारी को इस प्रकार अपमानित करते देखते समय आप को लज्जा नहीं आती? वोलो क्या है मेरे प्रश्नो का उत्तर। आज एक नारी आप से पूछती है, कि इस अन्याय के सम्बन्ध मे पाप का क्या विचार है ? क्या यह जो कुछ हो रहा है, धर्मानुकूल है !"
इतना कह कर द्रौपदी मौन हो गई, उसने एक एक करके सभी के मुख को देखा और फिर पाण्डवो की ओर दृष्टि डाल कर उन्हे लक्ष्य करके सिहनी की भांति गर्जना की- इसी विरते पर धर्मराज कहलाते हो, इसी विरते पर रण वीर, योद्धा, कर्मवीर महावली और गुणवत कहलाते हो? मैं युधिष्ठिर महाराज प्राप से पूछती हूं. कहां है आप का धर्म ? कहां है आप का न्याय ? किसने आप को मेरे भाग्य का निर्णय करने का अधिकार दिया था? मुझे अपने पाप की भट्टी मे धकेलने का आपको क्या अधिकार था? यदि कौरव कुल ने लज्जा, मानवता, धर्म और न्याय को स्वार्थ एव नीचता की भट्टी मे फेक दिया, यदि इन वृद्ध सज्जनो ने अपने पापी वेटों के हाथो अपने को गिरवी रख दिया है. यदि इन की बुद्धि को लकवा मार गया. तो आप तो धर्मराज हैं, आप क्यो इनके पडयन्त्र मे फंसते चले गए ? - फिर अर्जुन को लक्ष्य करके बोली-“मेरे सुहाग के स्वामी !