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द्रौपदो को चोर हरण
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उससे जाकर कहो, कि तुम स्वय चल कर जो चाहे पूछ लो । कोई उसके बाप का नौकर नही है जो उसके आदेश मान कर किसी से प्रश्न पूछता फिरे- जाओ , उसे अभी यहा ले आओ"
प्रातिकामी तुरन्त रनवास की ओर चला गया, पर उसी समय विदुर जी बोले- "दुर्योधन | इतनी नीचता पर न उतर कि लोग तुझ से घृणा करने लगेगे। तू अगर इन्सान है तो इतना तो समझ कि द्रौपदी का भरी सभा मे बुलाना बहुत ही घृणास्पद है। वह तेरे भाई की ही पत्नी है और पाचाल देश की राजकुमारी है।"
. भीष्म पितामह भी चुप न रह सके, दुखित व क्रुद्ध हो कर बोले-'नीच दुर्योधन ! यदि तू नीचता की चरम सीमा को पहुचना चाहता है, यदि तू नारी, जो सदा आदरणीय हैं और वह भी सती द्रौपदी जैसो नारी को भरी सभा मे अपमानित करना चाहता है, तो तेरा पिता तो अन्धा है ही, हमारी भी आँखे फोड दे, हमारे कानों के परदे तोड डाल ताकि हम द्रौपदी को उन आखो से अप'मानित होते न देख सके जिनसे हम ने उसे आदरणीय के रूप मे देखा है, उन कानो से उसके करूण चीत्कार न सुन सके जिन से हम ने उसका मधुर प्रणाम सुना है। दुष्ट मत भूल कि वह एक सन्नारी है जिसने कभी हमारे सामने अपनी आखे ऊची नही की।"
सभा मे उपस्थित लोग चिल्ला उठे- "अनर्थ हो रहा है, पाप हो रहा है।" '
" परन्तु दुर्योधन नीचता पूर्ण ठहाका मार कर हसता रहा । उधर प्रातिकामी ने द्रौपदी से विनम्र शब्दो मे कहा- "राजकुमारी । नीच दुर्योधन ने आदेश दिया है कि आप स्वय चल कर युधिष्ठिर से पूछ लें।"
शोकविह्वल द्रौपदी ने कहा-"नही, नही मैं सभा मे नही जाऊगी, यदि युधिष्ठिर उत्तर नहीं देते तो उपस्थित सज्जनो को मेरा प्रश्न सुनाओ, और जो उत्तर मिले आकर मुझे सुनायो।" - प्रातिकामी पुन. सभा मे पाया और सभासदो को द्रौपदी