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________________ दुर्योधन का पडयन्त्र ५५ __शकुनि ने दुर्योधन को धैर्य वधाने के लिए कहा- “तुम भी कैसे बुरे स्वप्न देखने लगे ? पाण्डव एक नही हजार जन्म भी करे तो भी वे तुम्हारा वाल वाका नहीं कर सकते। और मेरे विचार से तो तुम्हे यूही भ्रम हो गया है । द्रौपदी ने तुम्हें अपमानित करने के लिए उपहास नही किया होगा, और न पाण्डव ही तुम से किसी प्रकार का द्वप रखते है। अत. व्यर्थ की चिन्ता से क्या लाभ। तुम भी अपनी उन्नति के लिए प्रयत्न करो।" "नही, मामा मैं पाण्डवो को भलि प्रकार समझता हूं-दुर्योधन ने कहा- वह एक एक बात मुझे चिढाने के लिए करते है। वह 'महल भी उन्होंने मेरे ही उपहास के लिए बनाया था। मैंने प्रतिज्ञा "की है कि द्रौपदो द्वारा किए गए अपमान का वदला लूंगा, जब तक मैं उसी प्रकार द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित नहीं कर लूगा, तब तक चैन नही लूगा । या तो अपने अपमान का बदला लूगा और पाण्डवो को मुझे चिडाने का वदला मिल जायेगा, वरना मैं जीवित ही चिता में प्रवेश करू गा। अत यदि श्राप मुझे प्रसन्न - देखना चाहते है, तो कोई उपाय बताइये जिस से मैं अपने अपमान । का बदला ले सकू।" है शकुनि ने बार बार समझाया कि वह द्रोपदी या पाण्डवो से - बदला लेने की बात मन से निकाल दे, पर दुर्योधन न माना जव : शनि ने देखा कि दुर्योधन ह्य पर अड़ा हुआ है, तो वह भानजे : के प्रेम से विवग हो कर उसके मन को मात करने के लिए उस की इच्छा पूर्ति के उपाय खोजने में लग गया। दुर्योधन और शकुनि । दोनो नापस मे विचार विमर्श करने लगे। उसी समय कर्ण भी । वहा पहुंच गया और उनकी मत्रणा में वह भी शामिल हो गया। ई कर्ण ने तो वही अपना पुराना सुझाव दिया -- "चलो अनायाग ही १ पाण्डवो पर ग्राममण कर दो।' पर नकुनि ने इस प्रश्नाव का है नग्त विरोध किया यह बोला- "काणं तुम हमेगा पनि धारा विरोधियों को सामने की बात किया करते हो, पर बनी यह नही गोचले किदिनोशी पर भी कम शनि नही है। पादचों को पानि द्वारा परास्त कराना बच्चो का खेल नहीं है। वेअर तन गति
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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