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५४२. .............जैन महाभारत । सनिक ने अपनी दृष्टि पृथ्वी पर जमा दो और पैर से मिट्टो कुरेदने लगा। . अर्जुन सिंहर उठा,-"अभिर कहा गया? ... सैनिक पुनः कुछ न बोला।
आहत पक्षी की भांति उसका मन -तड़प -उठाः। वह अन्दर गया, जहां युधिष्ठिर अपने भ्रातामो-तथा- सगी-साथियों, सहित बैठे थे। जाते ही उसने चारो ओर दृष्टि डाली। सभो-की-गरदते लटक रही थी। अर्जुन के मन मे खेदयुक्त प्रानका - का बवडर उठ खड़ा हुआ। उसने युधिष्ठिर को प्रणाम किया और छुहते ही पूछा--"क्या वात है अाप-इस प्रकार मुरझाये हुए क्यो वैठे है? क्या हुअा है ? क्या कोई... ..?" ... . .उसने उपस्थित वीरो पर दृष्टि डाली। उसके सभी भ्राता और अन्य स्नेही वन्धु वान्धव वहाँ बैठे थे। फिर पूछा-''महाराज! आप सभी के चेहरे क्यो उतरे हुए है ? क्या वात हुई है ? आप सभी शोक विह्वल दिखाई देते है ? . .महाराज युधिष्ठिर फिर भी कुछ न बोले। किस मुंह से वे उस दुखद समाचार को सुनाते . -उनका-मन तुरन्त चीत्कार कर उठने को हुआ, पर अपने को उन्होने, नियत्रित किया। . . - "आप मौन क्यो हैं, बताईये, मुझे शीघ्र बताईये, हुआ क्या है ? मेरा मन प्राशकित हो गया है। अभिमन्यु कहाँ है, वह रोज. की भांति प्राज कही दिखाई क्यो नही पड़ता ?"-अर्जुन ने पूछा।
कुछ कहने के लिए युधिष्ठिर ने मुह खोला, पर आवाज काठ में ही अटक कर रह गई। 'अर्जुन ने दुखित होकर कहा-"तो क्या मेरा -प्रिय पुत्र......"
आगे वह कुछ न कह पाया, उसके नेत्रो मे प्रासू आ गए।
"हम ने तो बहुत प्रयत्न किया कि उस वीर वालक की सहायता को पहुँचे पर .. ' , । युधिष्ठिर के इतने शब्द सुनकर ही अर्जुन ने सारी बात समझ ली। उसके मन पर भयकर वज्राघात हा वह खडा न रह सका और वालको की भाति विलख बिलख कर रोने लगा। उसके दन को देखकर अन्य वीर भी अश्रुपात, करने लगे।
अर्जुन ने विलाप करते हुए कहा-"हाय मैं कही का न
ही अटक के दुखित होकर पाया