SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८० जैन महाभारत महा युद्ध बन्द हो जायेगा ." --द्रोण ने बताया। दुर्योधन और कर्ण प्राचार्य की बात से सन्तुष्ट न हुए। पर उन्हे तो अपनी योजना मान लिए जाने से मतलब था। अत: कर्ण बोला-"जैसे भी हो आप इस योजना को सफल बनाने में तो सहयोग देंगे। इसकी सफलता का भार तो आप ही पर है।" "हां, प्राचार्य जी आपको कल युधिष्ठिर को जीवित पकड कर देना है।"---दुर्योधन ने जोर देकर कहा । 'मैं पूर्ण प्रयत्न करूंगा।" द्रोणाचार्य के कण्ठ से निकला दुर्योधन, कर्ण और दुःशासन के हर्ष का ठिकाना न रहा। उन्होने आचार्य जी को धन्यवाद दिया। रात्रि बहुत हो गई थी, आचार्य सोना चाहते थे, उन्हे जम्हाई आने लगी, यह देख तीनो वहा से उठ खडे हुए परन्तु चलते चलते दुर्योधन ने कहा - "तो मुझे आशा है कि आप युधिष्ठिर को जीवित पकडने की प्रतिज्ञा कर रहे है।" अनायास ही, न चाहते हुए भी, द्रोण के मुह से निकल गया -~-"हां, हा, तुम विश्वास रक्खो, मै युधिष्ठिर को जीवित ही पकडूगा।" __ कर्ण ने उस अवसर पर द्रोणाचार्य की प्रशसा करदी"राजन् । आप द्रोणाचार्य की बात पर किसी प्रकार की शका न करें। वे अपनी बात के बडे धनी है, जो एक बार मुह से निकल गया बस पत्थर की लकीर होगया।" कदाचित उस समय प्राचार्य को दुर्योधन तथा कर्ण की नीति का भेद खुला होगा और सम्भव है अपने वचन पर उन्हे कुछ खेद भी हुआ हो। सारे पाण्डव युधिष्ठिर के शिविर मे उपस्थित थे। आगे युद्ध चलाने की योजनाए बन रही थी और शत्रो की योजना की जानकारी की प्रतिक्षा हो रही थी, तभी एक गुप्तचर ने प्रवेश किया । - "कहो, क्या समाचार लाये ?',--यह अर्जुन का प्रश्न था । "द्रोणाचार्य, सेनापति चने गए। और कल को महाराज युधिष्ठिर को जीवित पकडने की योजना बनी है। दुर्योधन ने द्रोणा. चार्य से वचन लिया है कि वे महाराज युधिष्ठिर को जीवित पकड
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy