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छटा दिन
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भाईयो को घेर कर युद्ध प्रारम्भ कर दिया। घटोत्कच ने परम ज्योतिष नरेश भगदत्त पर आक्रमण कर दिया। अलम्बुष रणोन्मत्त सात्यकि और उसकी सेना के साथ युद्ध रत होने पर विवश हुआ । घृष्ट केतु भूरिश्रमा पर टूट पडा और धर्मराज युधिष्ठिर श्रुतायु ने, वेकितान कृपाचार्य से और अन्य सब भीष्म जी से युद्ध करने लगे। . अर्जुन को अनेक राजानो से पाला पडा। वे विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र लेकर अर्जुन को घेर रहे थे। अर्जुन के बाणो के उत्तर मे समस्त कौरव पक्षी राजा चारो ओर बाण वर्षा करने लगे और जब अर्जुन का वेग उन से दूर न हुआ तो वे विभिन्न अस्त्रों का प्रयोग करने लगे। उस समय अर्जुन बुरी तरह घिरा हुआ था। परन्तु श्री कृष्ण इस प्रकार से रथ को हांक रहे थे कि रथ का इधर उधर घूमना ही शत्रुओ के तीरो के लिए अर्जुन की ढाल बना हुआ था। चारो ओर से घिरे अर्जुन को देखकर देवताओं को भी आश्चर्य हो रहा था और गन्धर्व जिनकी अर्जुन से सहानुभूति थी, वे तो विस्मित होकर युद्ध को देख रहे थे। अर्जन को एक बार वडा क्रोध
आया और उसने आव देखा न ताव एचास्त्र का वार किया जिससे शत्रुनो के सभी वाण व्यर्थ हो गए, फिर क्या था अर्जुन के सामने जो भी पाया वह घायल हए विना न रहा । यहा तक कि हाथी घोडे आदि भी बुरी तरह घायल होने लगे। अर्जुन ने एक वाण ऐसा मारा कि आग की लपटें सी निकली और हाथी घबराकर गरजने लगे। यहां तक कि सारथियों के हज़ार सम्भालने पर भी घोडे बेकाबू हो गए। तब शत्र राजाओ ने अपने को असफल जानकर भागकर भीम जी की शरण ली। जैसे डूबता हुआ व्यक्ति तिनके का सहारा लेने के लिए हाथ पाव मारता है, ठीक उसी प्रकार अपनी ताव अजून के रण कौशल और दिव्यास्त्रो रूपी सागर मडूबते देख शत्रु राजानो ने भीष्म जी रूपी महान जहाज़ की गरण में भाग कर जाने का प्रयत्न किया। शरणागत राजापो की रक्षा करने और अर्जुन के प्रचण्ड अाक्रमणो से कौरव सैनिको तथा पादानो को बचाने के लिए भीम जी ने दूसरे विरोधी को छोड कर मजुन की ओर अपना रथ हकवाया और बड़ी फुर्ती से आकर अर्जुन से युद्ध करने लगे।
इधर द्रोणाचार्य ने वाण मारकर मत्स्यराज विराट को घायल