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जैन महाभारत -
भीमसेन को घेर लेना चाहते हैं, उत मे भीष्म जी भी है, तो वह क्रुद्ध होकर अपने दिव्यास्न चलाता हुआ उनके सामने जा अड़ा 1 भीष्म जी ने कितना ही भयंकर युद्ध किया पर वे घटोत्कय से छुटकारा न पा सके । बल्कि भीष्म जी के साथ साथ रहने वाले कुछ कौरव भ्राता मारे गए। -- 5 सारे दिन कौरव वीर- पिटते ही रहे और भीमसेन तथा घटोत्कय दोनो ही प्रमुख पाण्डव वीर थे, जिन्होने कौरवो को होश न लेने दिया । -
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जब सूर्यास्त हुआ, तो दुर्योधन ने सुख की सास ली। थका माँदा- अपनी सेना लेकर अपने कैम्प की ओर चला गया। रात्रि को वह अकेले ही भीष्म पितामह के पास चला गया और बडी नम्रता के साथ उनसे जाकर कहा- "पितामह ! यह तो सारा संसार जानता है कि आप, द्रोण, कृप, अश्वस्थामा, कृत वर्मा, भूरिश्रवा, विकर्ण, भगदत्त आदि साहसी वीर मृत्यु से भी नही डरते ! इस मे भी कोई सन्देह नही...कि श्राप लोगो की शक्ति और पराक्रम के सम्मुख पाण्डवो की सेना भी कुछ नही है । आप में से एक एक के विरूद्ध पाच पाण्डव भी इकट्ठे होकर जुट जाए, फिर भी जीत उनकी नही हो सकेगी। इतना होने पर भी क्या कारण है कि कुन्ती पुत्र प्रतिदिन हमें हराते ही जाते हैं। रहस्य है, क्या है ? कृपया उसे मुझे बताईये । "
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भीष्म जी ने शात. भाव से कहा- "बेटा दुर्योधन । मैंने तुम्हे कई बार समझाया, पर तुम मेरी एक न मानी। मैं फिर कहता हूं पाण्डवो से सन्धि कर लो। पाण्डवो के मुकाबले पर एक बार यदि देवतागण भी ग्रा जाए तो भी वे परास्त नही हो सकते । क्योकि वे अपनी शुभ प्रकृति और धर्म नीति के कारण प्रजेय हैं। वे न्याय की ओर है और तुम्हारा पक्ष अन्याय का है। श्री कृष्ण वासुदेव उनके साथ है । धर्मराज युधिष्ठिर के शुभ कर्मो का फल उन्हें अवश्य ही मिलेगा । तुम सन्धि करके थोडा सा उनका राज्य लोटा दो तो वे तुम्हारे भाई हो रहेगे. तुम फिर भी राजा ही रहोगे और सर्वनाश से बच जाओगे । एक कुल के लोग होकर क्यों लड़ते हो । धर्मराज तथा श्री कृष्ण के मुकाबले हम जीत ही नही सकते। उनकी रक्षा उनका धर्म कर रहा है । वस यही रहस्य है ।
उस दिन दुर्योधन को त्रोध नही आया। शांत होकर अपने शिविर मे चला गया । पलंग पर लेटा हुआ वडी देर तक अपने विचारो मे ड्वा रहा । उसे नीद नही आई |