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________________ जैन महाभारत युधिष्ठिर की इस घोषणा से कौरवो के सैनिको पर महाराज युधिष्ठिर का मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ा । युयत्सु ने जब घोषणा सुनी, वह बहुत प्रसन्न हुआ । उस से न रहा गया, पाण्डवो की की ओर देख कर उस ने धर्मराज से कहा - "महाराज ! यदि ग्राप मेरी सेवा स्वीकार करे तो मैं इस महायुद्ध में आप की ओर से अपने भ्राताओं से लडूंगा ।" ३७० यह एक ऐसा प्रभाव था जिसे सुन कर साधारण व्यक्ति कभी विश्वास न करता कि युयुत्सु की प्रार्थना सत्य हृदय से की गई है। वह उसे सन्देह की दृष्टि से देखत परन्तु विशाल हृदय धारी धर्मराज युधिष्ठिर के मुखमण्डल पर हर्ष की रेखा उभर आई उन्होने अपनी दोनो भुजाएं आगे बढ़ा कर उल्लास पूर्वक कहा" युयुत्सु ! श्राश्रो ! ग्राम तुम्हारा स्वागत करता हू । हम सब मिल कर तुम्हारे पथ भ्रष्ट भाईयो से युद्ध करेंगे, तुम हमारी ओर से सग्राम करो मालूम होता है कि धृतराष्ट्र की सन्तान मे तुम ही एक सद्बुद्धि न्याय प्रिय तथा धर्मं बुद्धि वीर हो, तुम ही से उनका वश चलेगा ।" । युयुत्सु इस प्रकार के उत्साह वर्धक स्वागत से प्रसन्न होकर कोरवो का साथ छोड़ कर पाण्डवो की ओर चला आया महाराज युधिष्ठिर ने उसे छाती से लगा लिया और अपनी ओर से कवच दिया, अस्त्र शस्त्र देकर उस को उचित स्थान पर नियुक्त कर दिया । परन्तु दुर्योधन का हृदय जल उठा। मारे क्रोध के उस की आँखें लाल हो गई । वह ग्राक्रोश में न जाने क्या क्या बडबडाने लगा । सभी अपने अपने रथों पर ग्रारूढ हुए । सैंकडो दुन्दुभिय का घोष होने लगा तथा यौद्धा अनेक प्रकार से सिंह नाद करने लगे ।
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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