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________________ २९८ जैन महाभारत द्र पद राज के महामत्री ने अन्त में भीष्म पितामह के मुख पर नजरें। गडा दी। भीष्म पितामह उनकी प्रश्न वाचक दृष्टि के उत्तर में बोले - "पाप के द्वारा यह जानकर मुझे प्रसन्नता हई कि पाण्डव सकुशल हैं, वे आज शक्ति सम्पन्न हैं. कितने ही पराक्रमी राजा उन की सहायता को तत्पर है कितनी ही विशाल सेनाए उनकी ओर से से युद्ध मे उतरने के लिए तैयार हो रही है इतनी शक्ति बटोर लेने उपरान्त भी पाण्डव युद्ध नहीं चाहते, वे समझौते के उत्सुक हैं, इस बात को जान कर मुझे बहुत सन्तोष हुआ। और इस बात को दृष्टि मे रखते हुए मुझे यही न्यायोचित जंचता है कि उन्हे उनका राज्य वापिस दे दिया जाय तथा परम्पर मैत्री भाव की नीव डाली जाय। यही कल्याणकारी मार्ग है 1. मै समझता हू कि . अन्य लोग भी ... . . . .. अभी भीष्म पितामह की वात 'पूरा नहीं हो पाई थी कि कर्ण बीच मे बोल उठा उसे भीष्म पितामह की बात बडी अप्रिय लगी। बडे क्रोध के साथ वह बोला- विद्वान सज्जन ! आप ने जो बात कही, उस मे कोई नई बात नहीं है कोई नया तर्क आप ने प्रस्तुत्त नही किया प्रत्युतवही राम कहानी वाच रहे है जो पहले भी पाण्डवों की ओर से कही गई और आज कल कही ही जा रही है। युधिकिर दुर्योधन को यह घोंस देकर अपना राज्य वापिस लेना चाहते है कि उन की और मत्स्य राज तथा पाचालराज की बड़ी भारी सेनाए है परन्तु उन्हे याद रखना चाहिए कि किसी प्रकार की धौस के द्वारा वे अपना राज्य वापिस नहीं ले सकते उन्होंने अपना राज्य जुए मे हारा था- हारी हुई वस्तु को वापिस मांगने का आज तक किसी को अधिकार नहीं हुआ और न किसी ने ऐसा साहस ही किया। वे एक ओर शर्त शर्त गाते हैं और दूसरी ओर अपना अधिकार जमाते है। दोनो साथ साथ नहीं चल सकती। जहा तक शर्त का प्रश्न है, तेहरवे वर्ष के समाप्त होने से पूर्व ही अर्जुन पहचान लिया गया, इस लिए शर्त के अनुसार उन्हें पुन १२ वर्ष के वनवास और १ वर्ष के अज्ञात के - बाम के लिए जाना चाहिए। उसके उपरान्त शर्त की बात साठये
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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