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जैन महाभारत राज्यधिकारी निश्चित किया जाय । नीति के अनुसार एक तो राज कुमारो मे युधिष्ठर सब से बड़ा है इसलिए भी राज ताज का वह अधिकारी है। दूसरे परम धार्मिक सत्यवादी, दयालु, उदार, न्यायवन्त शूरवीर आदि नृपोचित गुणो की साकार प्रतिमा भी है। इसी कारण समस्त प्रजा तथा सेना सेनापति, मंत्रीगण आदि सभी अधिकरीगण युधिष्ठिर सहित पाडवो को हृदय से आदर भी देते है तथा उनके इशारे मात्र पर अपना तन मन धन न्यौछावर करने के लिए तत्पर रहते हैं ।
मत्रणा गृह मे उपस्थित समस्त अधिकारियो द्वारा इस भावना को चतुर्दिशा से समर्थन प्राप्त हो रहा था। सबके ललाटों पर हानुभूति नाच रही थी । परन्तु कौरव कुल वरिष्ट भीष्म पितामह, न्याय नीति मूर्ति विदूर, समीप मे बैठे हुए धृतराष्ट्र के चेहरे को निनिमेषनिहार रहे थे। जिसके कारण उपस्थित समुदाय के वार्तालाप की प्रतिक्रिया धृतराष्ट्र के हृदय मे क्या हो रही है यह उनसे छुपा हुआ नही रहा था ।
भीष्म पितामह दुर्योधन की महत्वाकाक्षा को और पुत्री के प्रति धृतराष्ट्र के मोह से भलीभान्ति परिचित थे। यही कारण था धृतराष्ट्र के हृदय के मुखरूपी दर्पण पर प्रतिविम्वित एकके पश्चात् दूसरे भावों को अनायास ही पढ रहे थे। और कौरवकुल के हित कारी भविष्य के लिए चिन्तित थे। ।।
तभी धृतराष्ट्र ने समीचीन चर्चा से ऊवकर मौनभग करते हुए बोलना प्रारम्भ किया, कि इसमे कोई शक नही कि पाडव होनहार शक्तिशाली एव प्रजाप्रिय है। परन्तु हमे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि दुर्योधन भी शूरवीर, नीतिनिपुण, दवंग प्रकृति का, एवं पांडवों की समानता रखने वाला राजकुमार है। अत. पीछे से कोई उपद्रव न खडा हो इसवात को ध्यान में रखते हुए हमे अपना निर्णय करना चाहिये । क्यो पितामह और विदुर जी आपकी इसमे क्या सम्मति
दीर्घ निश्वोस छोड़ते हुए पितामह ने कहना प्रारम्भ किया