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________________ प्रस्तुत ग्रन्थ लेखक के विषय मे सर्व मे भाग लिया और प्रत्येक मे सफलता आपके पावन पदपकज चूमने लगी सैकडो साधुवो में आप का तेज निराला ही था वास्तव मे शुक्ल सचमुच हो शुक्ल हैं मानो शुक्ल ध्यानी शुक्ल लेश्या के धारक हैं । मुख पर ज्योति दमदमा रही है कितनी सहन शीलतो कितनी शाति कितना साहस उत्साह प्रेम कितना स्नेह धन्य है आप के जीवन को वारम्वार धन्य हैं आपके सयम को गुरु देव धन्य है। आपका प्रारम्भ से ही श्रमण सघीय निर्माण में अत्याधिक प्रेरक हाथ रहा है । सन् 1957 मे देहली विश्व धर्म सम्मेलन मे आप सब साधुवों से प्रतिनिधि थे। सम्मेलन के लगभग 300 प्रतिनिधियो मे आपके चेहरे पर जो शान्ति चमक रही थी जो तेज चमत्कृत का वह अन्तर्राष्ट्रीय जगत के धार्मिक प्रतिनिधियो को जैन धर्म को 'त्याग मयी साधना और आत्मतेजस्विता के प्रति वरवश आकृष्ट कर रही थी उसकी सफलता का कारण आपकी कृपा दृष्टि ही है। आप भव्य भद्रात्मा ज्ञान दर्शन चरित्र के आराधक और दृढ संयमी साधक है सहानुभूति स्नेह प्रेम और सरलता का झरना तथा अहिंसा दया करुणासत्य ज्ञान तप का सरोवर निरन्तर एव अविरल प्रवाहित होता रहता हैं । आपने ही जनता के हृदय की भावना को सम्मान देते हुए बड़े बड़े ग्रन्थों का काव्यात्मक भाषा मे निर्माण किया अभी जैन महा' भारत के पीछे भी आपका उद्देश्य जन कल्याण हो रहा; है इसका प्रथम भाग तो प्रकाशित हो चुका था यह द्वितीय खंड प्रकाशित हो रहा है। यह शुक्ल जैन महाभारत जैन श्राचार जैन इतिहास और जैन दृष्टि कोण के विषय मे भी नवीन प्रकाश एव अलोक दिखाएगा ऐसो सम्पूर्ण मुझे विश्वास है। । संघ संगठन समाज'को एकता और संघ की भलाई तथा दूसरो के परमार्थ के लिए आपने युवाचार्य जैसे महान् पद का भी त्याग कर दिया यही है आपके जीवन की एक महान और महत्व पूर्ण विशेपता यही है आपके जीवन का एक सत्यादर्श । निर्भयता और निस्वार्थता श्रापके हृदय की ठोस वस्तु हैं आप मानव जीवन धर्म दर्शन समाज और सस्कृति के विभिन्न विषयो पर गृह विचार रखते हैं माप स्वछन्द विचार शैली विशिष्ट कल्पना
SR No.010302
Book TitleShukl Jain Mahabharat 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year
Total Pages621
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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