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जैन महाभारत
किया । युद्ध ने भयकर रूप धारण कर लिया । कस के विपुल बलके सामने मथुरा की सेना न रुक सकी । कर स्वभाव कस ने रक्त की बडी नदी बहाने के पश्चात् अपने पिता उग्रसेन को बन्दी बना एक पिंजरे में बन्द कर दिया और स्वयं राज्य का अधिकारी बन बैठा।
अतिमुक्त कुमार, उग्रसेन का पुत्र जो कस का छोटा भाई था, उसके इस निन्दनीय कुकृत्य को सहन न कर सका । उसका पुण्यात्मा कॉप उठा । मानसिक वृत्तियाँ स्थिर न रह सकी। तापक्रम बढ़ गया। पिता की इस प्रकार दुर्गति देख उसे ससार असार दिखाई देने लगा और वैराग्य उत्पन्न हो गया। अतिमुक्त कुमार ने सब कुछ त्याग कर दिया और साधुओं के पास जाकर दीक्षा ग्रहण ली।। ___ इस अवसर पर कस ने शौर्यपुर नगर से अपने पालक पिता को बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ मथुरा बुलाया। उसके निकट कस ने बहुत ही कृतज्ञता प्रगट की और उसे बहुमूल्य रत्न तथा सुवर्णादि भेंट देकर बहुत सम्मानित किया।
रानी धारिणी पतिव्रता स्त्री थी। उसे अपने स्वामी के चरणों में अपार प्रेम था । राजा उग्रसेन की दुर्दशा पर उसे बहुत दुःख हुआ। उन्हें छुड़ाने के लिये सब कुछ किया किन्तु असफल । निराश्रित होकर वह कंस के सामने आ उपस्थित हुई । रानी ने वात्सल्य प्रेम प्रगट किया, मर्यादा का भय दिखलाया, रोई, गिड़गिड़ाई, करुणा की भीख का आंचल उसके सम्मुख फैला दिया, किन्तु उसकी अनुनय विनय का आततायी कंस के हृदय पर कोई प्रभाव न हुआ।
जब रानी उपाय हीन हो गई तो कस के निकटतम मित्रों के पास गई और कहा अन्तरिम सहयोगी या मित्र ही मनुष्य के लिये ऐसा है कि कुमार्ग गामी भी उसकी शिक्षा को ध्यान से सुनता है । मित्र किसी के जीवन की बुराइयों को समूल नष्ट कर उसके जीवन में आमूल क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकता है। और "कस के साथ ऐसा करने में मेरा ही हाथ था। मैंने ही उसे कांसे के सन्दूक में वन्द कर नदी में फिक. वाया था। राजा को तो इस वृतान्त का ज्ञान भी न था। वे इस सबके लिये निरपराध थे। यह जो कुछ हुआ मैंने किया है, अत वास्तविक अपराधिनी तो मैं हूँ। तुम लोगों से यही प्रार्थना है कि यह वास्तविक घटना कंस को बता कर उसे सद्मार्ग पर लाओ, और कहो कि वह