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जैन महाभारत
आई और पूछने लगी कि यह बालक किसका है और कहाँ से लाये हो, क्या किसी मित्र या सम्बन्धी अतिथि का है जो पीछे-पीछे चला आ रहा हो, और आप इस बच्चे को आगे ले आये हो । यह कह कर वह मन ही मन अभिलाषा करने लगी कि क्या ही अच्छा हो यदि यह बच्चा हमे ही मिल जाय । पर कोई भला अपने ऐसे सुन्दर बच्चे को हमे क्यो देगा । हमारे ऐसे भाग्य कहाँ, इस बुढ़ापे मे हमारा ऑगन ठुमकते हुए बालक के पायलों की रुनझुन-रुनझुन मधुर ध्वनि से मुखरित हो । पर मेरे ऐसे भाग कहां जो मै इसे अपनी गोदी का लाल कह सकू । अभी इसके मां बाप पीछे-पीछे आया ही चाहते होगे वे घर में पांब रखते ही इसे इनसे ले लेंगे। इसी प्रकार नाना विध विचार तरगों में उतराती गोते खाती सेठानी ने बड़े उल्लास और आशका भरे हृदय से पूछा कि
आज सुबह ही सुबह यह बालक किसका ले आये हैं लगता तो यह कोई राजकुमार सा है देखो न यह मेरी ओर किस प्रकार टुकुर टुकुर निहार रहा है मानो मै ही इसकी माँ हू । और मेरे स्तनों से भी बरबस दूध की धार फूट निकलना चाहती है, इसे देखकर यह हर्ष रोमाँच और वात्सल्य भाव क्यों जागृत हो रहा है । बताओ बताओ प्रिय शीघ्र बताओ यह बच्चा किसका है । सेठानी के हृदय की इस प्रकार की उत्सुकता को देख सेठ जी कहने लगे हे प्रिये । जरा सास भी लेने दो, इतनी दूर नदी से इस भारी भरकम स्वस्थ बच्चे को हाथ में उठाकर लाने में मेरा तो सास भी फूल गया है। बच्चा है पता नहीं किसका का बालक है । कितना स्वस्थ और सुडौल है यह । लो तुम ही इसे गोद में लेकर देख लो न ।
इस पर सेठानी ने कहा-इसका बखान फिर करना, यह लो सब कुछ में देख ही रही हूं। पहले यह बताओ कि यह है किसका बच्चा। क्या यह तुम्हारे पास ही नहीं रह सकता। पर आपके ये भाग्य कहाँ ? जो आपके ऑगन मे ऐसा सुन्दर बच्चा खेलता हुआ दिखाई दे। खैर, किसी का भी हो जितने दिन अपने यहाँ रहेगा उतने दिन तो मेरा मन बहलायगा ही। यदि इसके दो-चार भाई और हुए तो मै तो इसके मॉ-बाप से इसे भीख में मॉग लूगी और यदि यह अपने भाई बन्धु का हुआ जव तो आप इसे गोद रख लीजिए। इसके मॉ-बापों को ।