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जैन महाभारत
orrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrnmmm चन्द्र निस्तेज सा भासित होता है। जो भी कारण हो हमें बताने की कृपा कीजिये, ताकि उस कारण को दूर करने के लिये उचित प्रयत्न किया जा सके।
तब उग्रसेन ने अपने विश्वस्त सचिवों को एकान्त मे बुलाकर सारी बात विस्तार से कह सुनाई । तव अत्यन्त दूरदर्शी बुद्धिमान् प्रधान मन्त्री ने कहा कि महाराज चिन्ता न कीजिये हम ऐसा उपाय करेंगे जिससे साप भी मर जावे और लाठी भी न टूटे। ___ तदनुसार एक दिन मन्त्रियो ने मृतक खरगोश का मांस राजा के हृदय के साथ इस प्रकार चिपका दिया कि किसी को कुछ लक्षित न हो सके, और उसके सामने ले जाकर राजा के हृदय पर से खरगोश के मांस के टुकड़े इस प्रकार काट-काट कर फैके कि धारिणी को विश्वास हो गया कि सचमुच राजा के हृदय का मांस काट डाला गया है । यह देखते ही रानी का दौहद पूर्ण हो गया और राजा के मर जाने के विचार से वह छाती पीट-पीट कर रोने लगी।
उधर मन्त्रियो ने राजा को एकान्त मे छिपा दिया । अपने प्राणपति के विरह में व्याकुल होकर जब धारिणी गर्भस्थ जीव की रक्षा की कुछ परवाह न कर पति के साथ ही जल मरने के लिये तैयार हो गई। तब उसके दुखातिरेक को देख कर मंत्रियो ने राजा को फिर से प्रकट कर दिया। तत्पश्चात् यथा समय गर्भकाल के पूर्ण होने पर पौष कृष्णा चतुर्दशी को मूल नक्षत्र मे रात्रि के समय रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया।
* कस का पूर्व भव * एक बार महाराज उग्रसेन भ्रमण के लिये नगर से बाहर निकले। चलते-चलते वे एक बन मे जा पहुंचे। वहा पर एक तपस्वी रहते थे। • तपस्वी के दर्शन कर महाराज अत्यन्त प्रसन्न हुए। ये तपस्वी एक मास मे
एक ही बार आहार ग्रहण करते थे। अत. मुनिराज को मासोपवासी जान उग्रसेन के हृदय मे उनके प्रति श्रद्धा और भी बढ़ गई। उन मासोपवासी मुनि का एक कठोर व्रत यह भी था कि मै पारणा के दिन केवल एक ही घर की भिक्षा ग्रहण करूगा, दूसरे की नहीं।' यदि उस ।। घर मे आहार का योग न हुआ तो वे बिना आहार के भूखे ही शहर ।