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जन महाभारत
....... वचनो मे पूछा कि 'प्रिये । जबसे तुम्हारे गर्भ लक्षण प्रकट हुए है तव से लेकर दिन पर दिन तुम क्षीण होती जा रही हो। न खाने मे, न न पीने से, न पहिनने में किसी मे भी तुम्हारा मन नहीं लगता, चोबीसो घटे उदास मुंह लिये बैठी रहती हो, जो भी सकल्प उठते हो नि सकोच भाव से बता दो, मै तुम्हारी प्रत्येक इच्छा को पूर्ण करने का प्राणपण से प्रयत्न करूगा। तुम्हारी इच्छा को पूर्ण करने के लिए मैं अपना राज-पाट, धनवैभव, सुख-ऐश्वय सब कुछ छोड सकता हूँ। अधिक तो क्या मुझे तुम अपना ही प्राण समझो ओर स्पष्ट कह दो कि तुम्हारे इतना उदास रहने का आखिर कारण क्या है।' ___ महाराज के ऐसे प्रेम भरे वचन सुनकर महारानी धारिणी हाथ जोड़कर प्रार्थना करने लगी कि-'प्राणनाथ क्या कहू, कुछ कह नहीं सकती बात ही कुछ ऐसी है कि जिसे न प्रकट करने मे ही सबकी कुशल है क्योकि आजकल मेरे हृदय मे न जाने किस कारण से ऐसीऐसी हिंसक (आसुरी) भावनाये जागृत हो रही है कि कुछ न पूछिये । इन दिनों मेरा मौन रहना ही श्रेयष्कर है। इसलिये आप मुझे कुछ कहने के लिये बाध्य न कर मुझे अपने हाल पर ही छोड़ दीजिये !
महारानी के ऐसे निराशा भरे वचनो को सुनकर महाराज उग्रसेन अत्यन्त दुःखित होकर कहने लगे कि
प्रिये, मैं तुम्हे पहले ही कह चुका है कि तुम्हारी इच्छा पूर्ण करने के लिए मैं अपने प्राणो तक का भी मोह नहीं करूगा फिर तुम इतना संकोच क्यों कर रही हो । जो भी इच्छा हो स्पष्ट स्पष्ट कह दो। ताकि तत्काल तुम्हारी इच्छा पूर्ण कर दी जावे । दौहद के दिनो मे इस प्रकार अनमना रहकर तुम अपना, हमारा, कुल का और आने वाले जीव का बड़ा भारी अनिष्ट कर रही हो। मैंने प्रण कर लिया है कि जब तक तुम अपने हृदय की बात न बता दोगी तब तक मै अन्न-जल
भी ग्रहण नहीं करू गा।' । महाराज के ऐसे प्यार भरे आग्रह को देखकर तथा अपने ऊपर . इतना द अनुराग समझकर धारिणी मन ही मन अपने आपको धिक्कारने लगी कि कहा तो ये मेरे स्वामी है जो मेरे लिये अपने प्राण तक देने को तैयार है और कहां मै हू जिसके मन मे रह-रहकर इनके प्राण लेने के सकल्प उठ रहे है। फिर भी वह कुछ न बोली और