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मनुष्यो के मनोविकार, चारित्र्य आदि से होने वाले जीवन के परिवर्तन का द्योतक भी है। यह ग्रन्थ जैन कथा साहित्य का अमूल्य पुष्प बनेगा जिसे कि महाराज श्री ने वर्षों कठिन परिश्रम करके आधुनिक शैली मे तैयार किया है।
वास्तव में ऐसे महाग्रन्थ की समाज को आवश्यकता भी थी। क्योकि समाज अधिकाँश रूप मे जैन मान्यतानुसार श्री कृष्ण की नोति, चरित्र तथा पाण्डवो का धैर्य कस की दुष्टता, जरासध की अधिकार-लिप्सा और महाभारत का मूल कारण · क्या था इससे अनभिज्ञ था । यह ग्रन्थ कुछ अपनी मौलिक विशेषतानो को साथ लेकर उपरोक्त अभावो की पूर्ति करता है। सब से बडी विशेषता इस ग्रन्थ की मुझे यही पसन्द आई कि यह देवनागरी लिपि तथा जन साधारण की भाषा को लेकर चला है । इससे इसका महत्व और भी बढ गया है। क्योकि तत्कालीन प्रचलित भाषा मे न रचे गये ग्रन्थ का मूल्य कम हो जाता है चाहे वह किता ही सुन्दर व भावप्रद क्यो न हो। ___ अत हम मन्त्री श्री जी के हार्दिक आभारी है जिन्होने कि अपने चिर अजित ज्ञान मे से एक किरण समाज को उसके विकास के लिए दी है। प्राशा है भविष्य मे भी ज्ञानदान देकर समाज का मार्गप्रदर्शन करेगे।
ग्रन्थमाला इसी दृष्टि को ध्यान में रखते हुए साहित्य-प्रकाशन कर रही है कि लेखन-पद्धति द्वारा दिये गये विचार युग-युग जीवित रहते है । इससे पूर्व भी यह मुनि श्री जी के जैन रामायण और धर्म दर्शन जैसे धार्मिक तथा सामाजिक ग्रन्थ प्रकाशित कर चुकी है जिसे जनता ने अपनाया है । अत प्रस्तुत नवीन ग्रन्थ जो पाठको के करकमलो मे उपस्थित हैं, आशा करता हूं कि वे उसका समुचित आदर करेगे।