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शाम्ब कुमार मल कर फिर देखा। पर बात वही रही। उस शैया पर सुन्दरी के स्थान पर शाम्ब कुमार बैठा था। यह शाबकुमार है तो फिर सुन्दरी कहाँ गई ? उस ने चारों ओर दृष्टि डाली, सुन्दरी वहां नहीं थी। क्रोध में आकर उस ने कहा___ "शाम्ब तुम्हें यहा आने की आज्ञा किस मूर्ख ने दी ? क्या तुम ने सुन्दरी पर भी हाथ साफ कर दिया डाकू !"
वह उस की ओर लपका। पर शांवकुमार खडा हो गया, वह बोला "तनिक होश से काम लो । इतने पागल मत बनो कि बाद को पछताना पडे । किस सुन्दरी की बात कर रहे हो ?'
"उसी सुन्दरी की जिसे अभी अभी मैंने इस कमरे में छोडा था।" 'इस कमरे मे तो कोई सुन्दरी नहीं थी।' 'तुम्हें महल में आने का साहस कैसे हुआ ? 'तुम्हारी माता जी मुझे ले आई, मैं क्या करू ?'
सुभानु क्रोध के मारे कापने लगा, उसने मा को आवाज दी । सत्यभामा ने जब कमरे में शाम्ब कुमार को देखा तो उसका भी पारा चढ़ गया। 'तुझे यहां किस ने आने दिया ? क्या तू पिता के आदेश का उल्लघन कर के यहाँ भाग आया ? अरे निर्लज्ज यहां क्यों आया?
"मैं क्या करू , आप ही तो मुझे यहाँ लाई हैं।' शाबकुमार ने कहा। ___ "अच्छा अब मेरी ही आँखों में धूल झोंकना चाहता है ? मुझे क्या पडी थी जो तुम कलंकी को लाती' सत्यभामा ने बिगड़ कर कहा । ___ "माता जी । मुझे तो आप ही लाई हैं। अभी अभी आप ने मुझे नाना प्रकार के भोजन खिलाये हैं। शान्ति पूर्वक शाम्बकुमार बोला।
सत्यभामा ने कमरे में चारों ओर दृष्टि डाली और क्रोध वश बोली'कुलकलकी । सफेद झूठ बोलकर अपना अपराध छुपाना चाहता