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शाम्ब कुमार
५१६ रान्त जाम्बवती ने एक परम सुन्दर पुत्र को जन्म दिया, महलो में हर्ष ठाठे मारने लगा। उन्हीं दिनों सारथी के घर पद्म कुमार ने जन्म लिया और मत्री की पत्नी ने सुबुद्धि को जन्म दिया, सेनापति के घर भी मगल गान की ध्वनि उठने लगी, हर्षे का वातावरण छा गया, जबकि उसकी पत्नी के गर्भ से जयसेन ने जन्म लिया।
जाम्बवती के पुण्यात्मा पुत्र को शाम्ब कुमार नाम दिया गया, उमी दिन से प्रद्युम्न कुमार नवोदित शिशु रत्न को अति स्नेह की दृष्टि से देखने लगा। निशि दिन के स्वाभाविक चक्र के चलते हुए शाम्यकुमार धीरे धीरे प्रगति की ओर अग्रसर होने लगा। शशि रश्मियां उम रूप देती, तो रवि किरणें तेज, सुन्दर वस्त्रों और प्राभूषणों से सजा कुमार देखने वालों के चित्त को हर लेता । सुन्दर कलि के समान वह विकसित होने लगा और धीरे धीरे उसने शैशव काल को पीछे छोड़ दिया। भीरु और शाम्ब कुमार को विद्या प्राप्ति के योग्य जानकर विद्वान विद्यावानों को शिक्षा के लिए सौंप दिया गया। कुछ ही दिनों में दोनों विद्यावान् यन गए। ___ परन्तु सुभानु को जुआ खेलने का दुर्व्यसन था, यह उसकी प्रिय क्रीड़ा थी। कभी कभी वह शाम्ब कुमार को भी अपने पास बैठा लेता
और उसे चुनौती देकर खेलने पर विवश कर देता, परन्तु जब ऐसा होतातो शाम्ब कुमार उसे परास्त कर देता । उसकी कितनी ही मुद्रा वह जीत लेता और फिर उन्हें दान दे देता। अन्य खेलों में भी शाम्बकुमार भीरु को परास्त कर देता था। भोरु अधिकतर भानु कुमार के साथ रहने लगा और शाम्ब कुमार प्रद्युम्न कुमार के साथ । श्री कृष्ण इन टो, रवि शशि की जोडियों को देखकर बहुत प्रसन्न होते। माताए प्रफुल्लित रहतीं।
शाम्ब की उदण्डता एक बार शाम्ब कुमार ने प्रद्युम्न कुमार से कहा-"मैं छः मास के लिये द्वारिकापुरी का राज्य चाहता हू । बस ६ मास के लिए वहां के राज्य पर मेरा अधिकार हो जाये । यही कामना है । क्या आप मेरी यह कामना पूर्ण करा सकते हैं ?"
बात कहने से पूर्व ही शाम्ब कुमार ने प्रद्युम्न कुमार से वचन ले लिया था, कि उसकी इच्छा पूर्ण करने के लिए हर सम्भव उपाय करना