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शाम्ब कुमार
पाठक सोचते होंगे, जाम्बवती को सत्यभामा का रूप धारण करने की क्यों आवश्यक्ता हुई ?
बात यह थी कि श्री कृष्ण उस सुरात्मा के द्वारा जान गए थे कि इस दिव्य शक्ति धारी हार के योग से प्रद्युम्न कुमार के पूर्व जन्म का परम स्नेही भ्राता उनके पुत्र रूप में उत्पन्न होगा। इस शुभ योग द्वारा वे सत्यभामा तथा स्क्मणि के बीच व्यर्थ की प्रतिस्पर्धा को शांत करने के लिए चाहते थे कि प्रद्युम्न कुमार के पूर्व जन्म के भ्राता का जीव सत्यभामा की कोख से उत्पन्न होना चाहिए, ताकि प्रद्युम्न कुमार और उस भावी पुत्र के स्नेह के कारण महलों में एक नवीन प्रेम की दीपशिखा जल उठे। सत्यभामा के हिये में प्रज्वलित ईया की अग्नि शान्त हो जाये । पोर इन दो जीवों का भ्रातृत्व दो नारियों के हिये के बीच परस्पर प्रेम की धारा प्रवाहित कर सके । प्रतण्व उन्होंने वह हार सत्यभामा को प्रदान करने का निश्चय कर लिया था। परन्तु प्रद्युम्न कुमार इस रहस्य को जानता या पार वह सत्यभामा को उसकी ईका फल देना चाहता था, वह चाहता था कि 'अपनी ईर्ष्या के फल स्वरूप वह पश्चाताप करने पर विवश हो अत जान बूझ कर उसने जाम्बवती को वह रहस्य बता दिया था और जाम्बवनी उस पुण्यात्मा को अपने पुत्र रत्न के रूप में प्राप्त करने के लिए लालायित हो उठी थी वास्तव में गहन विचार किया जाय तो यह सब कुछ जाम्बवती के अपने पुण्य का फल था, जो उसे इस रहस्य का ज्ञान हो गया और प्रद्युम्न कुमार की विद्या के बल से वह सत्यभामा का रूप धारण करने में सफल हुई।
तो सत्यभामा के रूप में पहुची जाम्बवती गले में श्री कृष्ण ने वह दिव्य हार डाल दिया ओर जाम्बवती गाईस्थ्य का अनुपम वरदान लेकर अपने महल को लोट आई।
आनन्द विभोर होकर श्री कृष्ण अपने उपवन में चहकते पक्षियों के कलरव को निरख कर आनन्द चित्त हो रहे थे, कि सत्यभामा वहां पहुची। क्योंकि उस बेचारी को श्री कृष्ण का अामत्रण कुछ देर से मिला था और वह अपने को शृगार युक्त करने मे अधिक समय लगा चुकी थी। पर उसे क्या मालूम कि उससे पूर्व ही जाम्बवती उसके रूप