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जैन महाभारत
देस कर हेमरथ को बडा दुःख हुआ, वह बुरी तरह व्याकुल हो गया । परम नूर से टक्कर लेने की उसकी क्षमता न थी ।
पर वह अपनी पत्नी को इस प्रकार छोड़ जाने को तैयार न था, अतः चन्द्राभा से एकान्त मे बातचीत करने के यत्न करने लगा । पर सक्न न हुआ । 'अपनी असफलता और अक्षमता के कारण वह बहुत व्याकुल हुआ। इचर मे उधर पागलो की भाति रोता पीटता घूमने लगा | वन फालिए, बाल नोच डाले, और धल मे लोटने लगा ।
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'हाय मेरी पत्नी ! हाय मेरी रानी" कह कर चिल्लाता । नर नारी उसे पागल समझ कर सहानुभूति दर्शाते, कुछ छेड़ करते, और कुछ हंसी उड़ाते । इसको देख कर इन्दुप्रभा ने उसे एक दासा द्वारा बुलाया और कहा - "मैन थाप से बारम्बार कहा कि मुझे मत ले चला पर आप न माने | अब आप अपने किए का फल भोगिये
कनकरथ ने अवरुद्ध कण्ठ से कहा - "हे प्रिये । मेरी एक भूल का इतना बडा दण्ड न दी । मैं पागल हो जाऊंगा। मैं तुम्हारा पति है । यह तो याद करो कि तुम ने जीवन पर्यन्त मेरे साथ रहने की शपथ ली थी ?"
"कभी पुण्यहीन के पास रत्न नहीं रहते, बुद्धिहीन लक्ष्मी की रक्षा नहीं कर सकता और निर्बल अपनी पत्नी को भी नहीं रख सकता । पन्द्रमा से आसे गरेर कर कहा
तुमने मेरी इच्छा के प्रतिकूल कार्य किया था, अब मैं तुम्हारी पूर्ण नहीं कर सकती। जाओ अब भी मेरी व्यान मान लो और म यहाँ से भाग जाओ, अपने प्राणों की रक्षा करनी होती मुलाओ ।"