SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 481
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रुक्मणि मंगल ४६३ हा हम कुन्दनपुर लेने के लिए अवश्य पहुंचेंगे । उपवन में अवश्य ही मिलना जय यह पत्र रुक्मणि को मिला, वह गद्गद् हो उठी। उसकी धात्री को भी कोई कम हर्ष न हुआ। दोनों प्रफुल्लित हो उस दिन की घाट जोहने लगी। रुक्म बरात के स्वागत के अपूर्व तैयारियां कर रहा था, उसने सारा नगर सजवाया था। सेना के लिए उचित प्रवन्ध था । जव शिशुपाल की बारात ने नगर में प्रवेश किया । महल की सभी नारिया ऊपर चढ गई ताकि दूल्हे की निराली, व अनुपम शोभा देख सकें । सजधज से चढ़ती बारात का तमाशा देखे । सजे हुए नगर के ठाठ देखें । स्वागत की अनुपम रीति देखें । पर रुक्मणि ऊपर न गई। माता ने भी कहा, सखी सहेलियों ने बहुत कहा, पर वह अपने स्थान से न हिली। यरात एक दिन पूर्व चढ गई थी । सस्कार दूसरे दिन होना था। जय स्वनणि की माता ने रुक्म को बताया कि मक्मणि कुछ रुष्ट प्रतीत होती है वह सभी के कहने के बावजूद बरात तक देखने को न गई, नो उमे सन्देह हुआ कि कहीं रुक्मणि और पिता जी कुछ गडबड न कर पैठे 1 इसलिए उमने महल के चारों ओर मशस्त्र पहरा लगा दिया, नगर के चौराहों और द्वारों पर भी सेना की टुकडियां नियुक्त कर दी गई। रुक्मणि हरण व युद्ध दूसरे दिन अर्थात् माघ शुक्ला अष्टमी को रुक्मणि की यात्री ने कहा कि रुकमणि देव पूजन के लिए उपवन में जाना चाहती है। रुक्म ने कहा- "नहीं । महल से बाहर जाने की बाजा नहीं दी जा नकती।' थोड़ी देर बाद धायमाता ने फिर कहा--"वह पिना देव पूजा किए न मानेगी। यह जरूर जाना चाहती है । इम में हर्ज ही क्या है ?" मम पाला- "उमे किली प्रकार मनाया। कि वह ऐमी हठ न करे।' योटी देर पाद धात्री ने पिर जा कर कहा...फन्या ही तो है कोई पशु तो नहीं । उसे पिल्लू न पन्दी ममान क्यों रख छोडा है । उम ने तो देव से मनौनी मनाई थी कि निशान जना पर मिलेगा तो वह नकार में पूर्व मरी पूजा करेगी, मिष्ठान पाटेगी। श्रर जय तक देव पुरन पर ले विवाह नही होगा।"
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy