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________________ रुक्मणि मंगल ४४६ पिता जीं । आप तो वृद्ध हो गए हैं। वृद्धावस्था ने आपकी बुद्धि | भ्रष्ट कर दी है। आप वर्तमान युग की बातें भला क्या जानें। मैं अपनी बहिन का विवाह उस माखनचोर नचैया से होने देकर अपनी नाक नहीं कटा सकता । आप का क्या है आप तो पके आम के समान हैं, न जाने कव परलोक सिधार जायें । लोगो की आलोचनाएँ तो मुझे सुननी होंगी ।" रुक्म बोला । उसकी बातें सुन कर भीष्मक समझ गये कि रुक्म मेरा भी अपमान कर देगा और मेरी न चलने देगा, फिर भी वह पूछ ही बैठे- "तो फिर तुम्हीं बताओ रुक्मणि के लिए और है कोई उपयुक्त वर ?" "हाँ, है क्यों नहीं, शिशुपाल, कितना सुन्दर, वीर, योद्धा, सुशील, और सर्वगुण सम्पन्न है। आप ने तो उसे देखा ही है, बल्कि सभी सारे परिवार ने उसे देखा है । जाना पहचाना युवक है। सभी प्रकार से रुक्मणि के उपयुक्त है। श्रेष्ठ कुल की सन्तान है ।" रुक्म वोला । और फिर अपनी माता को सम्बोधित करके बोला- "माता जी क्या आप भी अपनी लाडली बेटी का हाथ उस ग्वाले के हाथ में देंगी, जिस का पता नहीं कि कितने दिन और जीवित रहेगा । जरासंध उसका कट्टर वैरी है । उसी से डरकर वह शौरीपुर से भाग गया है और जगल में नगर बसा कर रह रहा है । जरासध ताक मे है जब भी कभी जरासध का दाव पडेगा वह उस की हत्या कर देगा । ऐसी दशा में तो रुक्मणि का विवाह उस भगोडे के साथ कराने का सीधा सा अर्थ यह है कि हम जानवूक कर रुक्मणि को विधवा बनाने पर तुले हैं ।" रानी के ऊपर रुक्म के यह शब्द काम कर गए। एक माता भल यह कब सहन कर सकती है कि वह अपनी पुत्री को ऐसे व्यक्ति के हाथ में सौंप दे, जिसका भविष्य ही अनिश्चित है । इसलिए वह बोली"बेटा । तुम ठीक कहते हो। मैं रुक्मणि का विवाह ऐसे के साथ कदापि न होने द गी ।" - "रानी ' तुम भी इस मूर्ख की बातों में आ गई । यह तो शिशुपाल को बहनोई बनाने पर तुला है क्योंकि यह उसका मित्र है। वरना श्रीकृष्ण जैसे महान् नृप के सामने भला शिशुपाल किस खेत की मूली हे ।" भीष्मक पोले ।
SR No.010301
Book TitleShukl Jain Mahabharat 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherKashiram Smruti Granthmala Delhi
Publication Year1958
Total Pages617
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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