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जैन महाभारत mmmmmmmmmmmmmmmmmmmm द्वारा बताया-"राजन् ! जरासध के भारी हमले से आप निराश न हों। जिस कुल में कृष्ण और बलराम जैसे पुण्यवान होंगे, उसकी हार असम्भव है । उस कुल के आगे मनुष्य तो क्या देवताओं की भी एक नहीं चल सकती। आप विश्वास रक्खें जीत अन्त में आप ही की होगी किन्तु “राजन् ! आप शत्रु से चारों ओर से घिरे हैं, शौरीपुर की स्थिति जरासंध के विरुद्ध युद्ध करने के लिए उपयुक्त नहीं है। जव तक आप इस नगर में रहेगे आर इस के चारो ओर युद्ध चलेगा, आप कठिनाईयों और विपदाओं में फमे ही रहेंगे।" नैमितिक बोला।
"तो फिर ?" "आप इसी स्थान को अपनी बपौती क्यो बनाते हैं।"
"तो क्या आप का अर्थ यह है कि हम शौरीपुर छोड़ दें ?" समुद्रविजय ने प्रश्न किया।
"जी हाँ, आप किसी दूसरे स्थान पर अपनी शक्ति को केन्द्रित कीजिए। नैमित्तिक बोला।
समुद्रविजय सोच में पड़ गए। उन्होंने कुछ देर बाद पूछा--"तो फिर कौन सा स्थान शुभ रहेगा ?"
"आप पश्चिम की ओर जायें, सागर तट की ओर मुख करके बढ़ते चले जायें। चलते ही चले जाये । इधर उधर जाने का विचार न करे, सीधे चले जाये और चलते चलते जिस स्थान पर सत्यभामा की कोख से+पहली सन्तान उत्पन्न हो, बस वहीं अपनी पताका गाढ़ दें।
वहीं आनन्द पूर्वक वास करें और विश्वास रखें कि उसी स्थान पर . आप को एक बड़ी धनराशि प्राप्त होगी। युद्ध के लिए आवश्यक साधन 'भी जुट जायेगे।" नैमित्तिक की बात सुनकर उन्होंने श्रीकृष्ण, बलराम
और अपने सेनानायको, मन्त्रियों आदि को बुला कर ज्योतिषी की • बात पर विचार विमर्श किया। सभी ने युद्ध नीति की दृष्टि और समय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए शौरीपुर को अनुपयुक्त ठहराया और पश्चिम दिशा की ओर प्रस्थान करना उचित समझा।
+सत्यभामा दो पुत्रो को जन्म देवे । त्रि० पा० ----